Wednesday, December 29, 2010

माँ मैं तो हारी आई शरण तुम्हारी

 

  माँ मैं तो हारी, आई शरण तुम्हारी

माँ मैं तो हारी, आई शरण तुम्हारी,
अब जाऊँ किधर तज शरण तुम्हारी 


दर भी तुम्हारा लगे मुझको प्यारा,
 तजूँ मैं कैसे अब शरण तुम्हारी 
माँ......................................


मन मेरा चंचल, धरूँ ध्यान कैसे,
बसो मेरे मन, मैं शरण तुम्हारी
माँ......................................


जीवन की नैया मझधार में है, 
पार उतारो मैं शरण तुम्हारी
माँ................................. 


तन में न शक्ति, करूँ मन भक्ति 
अब दर्शन दे दो मैं शरण तुम्हारी 
माँ.............................................

- कुसुम ठाकुर - 

Tuesday, December 14, 2010

देवी स्तुति (जय जय जगजननि देवी)


"देवी स्तुति"

जय जय जगजननि देवी सुर-नर-मुनि-असुर-सेवी ,
भुक्ति मुक्ति दायिनी, भय-हरण कालिका 

मंगल-मुद-सिद्धि-सदनि, पर्वशर्वरीश-वदनि,
ताप-तिमिर-तरुण-तरणि-किरणमालिका 

वर्म, चरम कर कृपाण, शूल-शेल-धनुष-बाण,
धरणि, दलनि दानव-दल, रण-करालिका 

पूतना-पिशाच-प्रेत-डाकिनि-शाकिनि-समेत,
भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगालि-जालिका 

जय महेश-भामिनी, अनेक-रूप-नामिनी,
समस्त-लोक-स्वामिनी, हिमशैल-बालिका

रघुपति-पद परम प्रेम, तुलसी यह अचल नेम,
देहु ह्वै प्रसन्न  पाहि प्रणत-पालिका  


Saturday, December 11, 2010

अभिनव पल्लव


"कवि कोकिल विद्यापति"

अभिनव पल्लव बैसक देल 
धवल कमल फुल पुरहर भेल 

करू मकरंद मंदाकिनि पानी 
अरुन असोग दीप दहु आनि

माई हे, आज दिवस पुनमंत
करिअ चूमाओन राय बसंत 

संपून सुधानिधि दधि भल भेल 
बहामी बहामी भमर हकारय गेल 

केसु कुसुम सिंदूर सम भास् 
केतकि धूलि बिथरहु पटबास

भनइ  विद्यापति कवि कंठहार
रस बुझ सिवसिंह सिव अवतार 

उपरोक्त पंक्तियों में कवि विद्यापति बसंत ऋतु का स्वागत करते हुए कहते हैं कि : नए पल्लव को आसन के रूप में रखा गया है तथा श्वेत कमल को कलश के रूप में . पुष्प रस (मकरंद) गंगाजल और अशोक के नए लाल कोमल पत्ते को दीप के रूप में सजा दिया गया है. वे कहते हैं हे, दाई माई आओ इस शुभ दिन में राजा बसंत का चुमावन की जाए. पूनम का चाँद दही का कम कर रहा है. भंवरा घूम घूम कर सबको हकार (निमंत्रण) दे रहा है. पलास (टेसू ) का फूल सिंदूर जैसा लग रहा है. केतकी (केवडा) का पराग सुगन्धित चूर्ण के रूप में प्रयोग हो रहा है . कवि कंठहार कहते हैं कि इसका रस शिव अवतार राजा शिव सिंह समझते हैं. 
  


Saturday, November 20, 2010

Sama Chakeba(सामा चकेबा )


Tomorrow is Kartik Purnima Birthday of Guru Nanak and I always remember this day. It is my younger brother's Birthday too and on this day he use to be treated as a VIP because the last day of a festival called Sama Chakeba which girls celebrate for their brother also falls on this day.


Sama Chakeba is a festival which is celebrated during winter season when birds migrate from Himalaya to plains . It is celebrated in Mithila with advent of these colorful birds and is dedicated to brother sister relationship. It represents the tradition and art of making idol of Mithilanchal. In this festival the clay idols are made and decorated by clothes and colors in traditional way.


Sama Chakeba (festival) starts on the festival called Chhath, the Seventh Day of Kartik Lunar . The idol of Sama - Chakeba(pair of birds) which has most significance of this festival is made on this day . Rest of the idols such as Chugla (चुगला), Vrindaban(वृन्दाबन), Batgamani (बटगमनी), are made till Ekadashi, the Eleventh Day and ends on Full Moon of Kartik that is Kartik Poornima . It is said that on Ekadashi the date for Sama's "Bidai" is fixed and on Poornima she goes, that is called" Sama Bhasaun ".


Every day in the night the sisters take all the idols in a bamboo basket to the cultivated land. There is a big entertainment program performed by brothers and sisters. Every day sisters pray for their brother's long life . On and from the Ekadashi, that is Dev Uthaun Ekadashi the idols are colored and decorated. On the Kartik Poornima sisters take all the decorated idols along with their brothers to the cultivated land. Brothers split the idols putting on their knees and is thrown to the cultivated land . Sisters give sweets to their brothers and pray for their brother's long life .

Monday, November 1, 2010

Bride picking flowers-2

फूल लोढ़ैत कनिया ; फूल चुनती हुई दुल्हन ; A  Bride  Picking  Flowers .

Friday, October 8, 2010

देवी दुर्गा केर पुष्पाञ्जलि मन्त्र


(आजु सs दुर्गा पूजा अछि तs सोचलहुं  एहि बेर पुष्पांजलिक मन्त्र दs दियैक)
"पुष्पांजलि मन्त्र"

ॐ दुर्गे दुर्गे महामाये सर्वशक्तिस्वरुपिणि 
त्वं काली कमला ब्राह्मी त्वं जया विजया शिवा
त्वं लक्ष्मिर्विष्णुलोकेषु कैलाशे पार्वती तथा
सरस्वती  ब्रह्मलोके चेन्द्राणी शक्रपूजिता
वाराही नारसिंही च कौमारी वैष्णवी तथा
त्वमापःसर्वलोकेषु ज्योतिर्ज्योतिःस्वरूपिणी
योगमाया त्वमेवाsसि वायुरूपा नभःस्थिता
सर्वगन्धवहा पृथ्वी नानारूपा सनातनी
विश्वरूपे च विश्वेशे विश्वशक्तिसमन्विते 
प्रसीद परमानन्दे दुर्गे देवी नमोस्तुते 
नानापुष्पसमाकीर्ण नानासौरभसंयुतम्
 पुष्पाञ्जलिञ्च विश्वेसि गृहाण भक्तवत्सले
एष पुष्पांजलिः   

Saturday, October 2, 2010

रूसी चलली भवानी (महेशवाणी आ नचारी)




"कवि कोलिक विद्यापति"

रुसि चलली भवानी तेजि महेस 
कर धय कार्तिक कोर गनेस 

तोहे गउरी  जनु नैहर जाह 
त्रिशुल बघम्बर बेचि बरु खाह

त्रिशुल बघम्बर रहओ बरपाय 
हमे दुःख काटब नैहर जाए

देखि अयलहुं गउरी, नैहर तोर 
सब कां पहिरन बाकल डोर 

जनु उकटी सिव , नैहर मोर 
नाँगट सओं भल बाकल-डोर 

भनइ विद्यापति सुनिअ  महेस 
नीलकंठ भए हरिअ कलेश  

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कोकिल विद्यापति गौरी के रूठ कर जाने का वर्णन करते हुए कहते हैं :
गौरी रूठ कर शिव जी को छोड़ विदा होती हैं. कार्तिक का वे हाथ पकड़ लेती हैं और गणेश को गोद में ले लेती हैं . शिव जी आग्रह करते हुए कहते हैं - हे गौरी , आप नैहर (मायके ) न जाएँ . चाहे उन्हें त्रिशूल और बाघम्बर बेचकर ही क्यों न खाना पड़े . यह सुन गौरी कहती हैं - यह त्रिशूल और बाघम्बर आपके पास ही रहे . मैं तो नैहर जाऊँगी ही , चाहे दुःख ही क्यों न काटना पड़े . तब शिव जी कहते हैं - हे गौरी मैं आपका नैहर भी देख आया हूँ . वहाँ लोग क्या पहनते हैं ....सभी बल्कल यानि पेड़ का छाल आदि पहनते हैं . यह सुन गौरी गुस्सा जाती हैं और कहती हैं - हे शिव मेरे नैहर को मत उकटिए( शिकायत ) . ऐसे नंगा रहने से तो अच्छा है लोग पेड़ का छाल तो पहनते हैं . विद्यापति कहते हैं - हे शिव , सुनिए ! नीलकंठ बन जाएँ और गौरी के सारे क्लेश का हरण कर लें . 

Friday, October 1, 2010

आजु नाथ एक व्रत (महेशवाणी आ नचारी)



कवि कोकिल विद्यापति 

"आजु नाथ एक व्रत "

आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागल हे।
तोहे सिव धरु नट भेस कि डमरू बजाबह हे। ।
तोहे गौरी कहैछह नाचय हमें कोना नाचब हे।।
चारि सोच मोहि होए कोन बिधि बाँचब हे।।
अमिअ चुमिअ भूमि खसत बघम्बर जागत हे।।
होएत बघम्बर बाघ बसहा धरि खायत हे।।
सिरसँ ससरत साँप पुहुमि लोटायत हे ।।
कातिक पोसल मजूर सेहो धरि खायत हे।।
जटासँ छिलकत गंगा भूमि भरि पाटत हे।।
होएत सहस मुखी धार समेटलो नही जाएत हे।।
मुंडमाल टुटि खसत, मसानी जागत हे।।
तोहें गौरी जएबह पड़ाए नाच के देखत हे।।
भनहि विद्यापति गाओल गाबि सुनाओल हे।।
राखल गौरी केर मान चारु बचाओल हे।



अर्थ :
उपरोक्त पदों में गौरी के माध्यम से कवि कोकिल विद्यापति कहते हैं कि हे शिव ! आज एक महान व्रत का मुहूर्त है और मुझे सुख का अनुभव हो रहा है। हे प्रभु आप नटराज का भेष धारण कर डमरू बजावें। गौरी के इस आग्रह को सुन शिव जी कहते हैं ...हे गौरी आप हमें नाचने के लिए कह रही हैं पर मैं कैसे नाचूं ? कारण, नृत्य से उत्पन्न संभावित चार खतरों से मैं चिंतित हूँ जिससे बचना मुश्किल है। पहला - नृत्य के क्रम में चाँद से अमृत की बूँदें टपकेंगी जिससे मेरा यह बाघम्बर सजीव अर्थात जीवित हो जायेगा और मेरे बसहा को खा जायेगा। दूसरा - नृत्य के क्रम में ही मेरे जटा जूट में लिपटे हुए सांप नीचे की तरफ खिसक कर आ जाएँगे और और पृथ्वी पर विचरण करने लगेंगे, जिसके फलस्वरूप कार्तिक के पाले हुए मयूर उन्हें मार डालेंगे । तीसरा - जटा से निकलकर गंगा भी बाहर आ जाएँगी और सहस्त्र मुखी हो बहने लगेंगी, जिसे संभालना बहुत मुश्किल होगा । चौथा - मुंड का माला भी टूट कर बिखर जाएगा और वे सारे जीवित हो उठेंगे और आप यहाँ से भाग जाएँगी । यदि आप ही भाग जाएँगी तो फिर नृत्य का क्या प्रयोजन , कौन देखेगा ? इस गीत को गाकर विद्यापति कहते हैं औघर दानी शंकर पार्वती के मान की रक्षा करते हुए नृत्य भी करते हैं और संभावित खतरा से भी बचा लिया


Thursday, September 30, 2010

Monday, September 20, 2010

A Village Woman

द्वार पर ठाढ़ कुजरनी
मैथिल सबमे किछु जातिक महिला सब घरे-घर जाक तरकारी बेचैत छहि जकरा कुजरनी कहल जायत  छहि |

मैथिलि में कुछ महिलायें घर घर जाकर सब्जियां बेचती हैं जिन्हें 'कुजरनी' कहा जाता है |

A  woman selling vegetables and  holding  pet goats . 

Wednesday, September 15, 2010

फूल लोढ़ैत कनिया

        Bride Picking Flower    

मैथिल सबमे फूल लोढ़क व्यवहार बड पुरान अछि | मधुश्रावणी में पूरा पंद्रह दिन नवव्याहता अपन सखी सब संगे फूल लोढ़ैत छथि आ विषहरा के पूजा करैत छथि |

मैथिल में श्रावण  माह  में नवव्याहता  फूल चुनती हैं और पूजा करती हैं | 

In Maithils, newly wedded brides pick flolwers for worshipping Gods .




Monday, September 13, 2010

The God Ganesha made in madhubani painting style

श्री गणेश
वक्रतुंड महाकाय सुर्यकोटिः समप्रभ | निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु  सर्वदा ||

Monday, September 6, 2010

गंगा स्तुति


"गंगा स्तुति "

प्रातः वंदन करय छी हे गंगे 
कल कल सुनि मोन हर्षित हे गंगे 

दिय दर्शन सब दिन हे गंगे 
हरु विघ्न बस एतबहि हे गंगे 

लहरि लहरि सत राग हे गंगे 
मुग्ध मोन भेल अनुराग हे गंगे 

करू मिनती स्वीकार हे गंगे 
क्षमा माँगय छी दिय सदगति हे गंगे 

नेह निनानिद पुनमति हे गंगे 
कुसुम निहारि भेली धन्य हे गंगे

- कुसुम ठाकुर -

Tuesday, August 24, 2010

Kohbar In Mithila !!




MITHILA a region, a rich cultural legacy, a cradle of creativity and a special style of painting .Mithila means all this and more. Tucked away in the foothills of the Himalayas, Mithila is surrounded by rivers ñ the Ganges to the south, the Koshi in the east and the Gandak in the west. The region has its own way of life, religious philosophy, culture, code of social conduct and language on one hand; art, craft and music on the other.










For thousand of years, generation after generation, the women of Mithila have been making ceremonial and devotional floor paintings and wall murals, associated with various festivals and auspicious occasions. They use vivid natural colours, applying these with simple brushes made of bamboo and raw cotton. These paintings contributed to the culture of the region, which survived, and flourished due to countless recapitulation of abstract designs by the women, without much conscious effort. Thus, the ancient culture and tradition of Mithila has been treasured by the women in the folk paintings on the walls of the houses. The pictures on the wall served as living picture books, a vibrant means of visual education, from which a young girl, under the guidance of an experienced lady such as her mother, grandmother or neighbour, learnt to draw stories from ancient epics, myths and legends. The symbols in the paintings were a means of learning and exploring tantras, meditation, sexuality, decoration and culture. The figures in Kohbar had distinct meaning to newlyweds, combining sexuality with spirituality. Thus, even women unversed in the alphabet were steeped in Mithila paintings. These artists of Mithila had no set principles and instructions from any art book to follow. Free of stylistic influences, their own ideas and imagination played a vital role in creating a particular work of art. Strong, unrealistic natural colours and forms imparted an additional sense of the dramatic to paintings infused with an innocent and primal energy.





he year 1934. The place a small district of North Bihar. The chance discovery of a tradition of mural painting by W. G. Archer, a British civil servant and then sub-divisional officer in Madhubani District. He noticed and photographed the richly colored paintings on the walls of inner rooms of these houses, being unable to collect any paintings on paper, which did not yet exist. Archer ís observations on Mithila paintings, published in the art journal MARG in 1949, attracted several art lovers and activists towards this marvelous folk tradition. Among them was Pupul Jayakar of the All India Handicraft Board (AIHB). In 1966-67, when a severe drought hit North Bihar, in order to generate income from activities other than agriculture Mrs. Jayakar assigned Shri Upendra Maharathi and Shri Bhaskar Kulkarni to motivate and encourage the women painters to draw and paint on paper, according to their own tastes, thematic preferences and sense of color. It was a talent search of a sort, in which some twelve artists were discovered as individuals with outstanding capability.

Although the first exhibition on Mithila paintings, held at the London Art Gallery in 1942 went unnoticed, in 1967 an exhibition in New Delhi curated by Mr. Kulkarni was a huge success. This contributed greatly to the recognition of Mithila as a distinct school of folk art. The publication of several books on Mithila paintings, The Art of Mithilaí by the French scholar Yves Vaquard (1977); ëThe Earthen Drumí by Pupul Jayakar; ìIndian Popular Paintingî by Mildred Archer; the efforts of various people like Rajeev Sethi and Haku Shah; Events such as :









Apana Utsaví  and Aditií, part of the Festival of India (in London in 1982, and the US in 1985) and the high honours bestowed on the pioneers of this movement (National Awards such as the 






Padma Shree, Kala Mani, Kala Shree 





and Tulsi Sammanfurther led to the popularisation of this art form on a global scale.



रक्षा बंधन !!




"रक्षा बंधन केर मन्त्र"

ॐ येन बन्धो बलि राजा दान वेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वां प्रति बध्नामि  रक्षे मा चल मा चल: ।।

Wednesday, August 18, 2010

The Goddess Kali and the sacred thread ceremony



          मिथिलांचलमें भगवती  कालीजीक अराधना सब शुभकार्य में कैल जाई छैन | अहि चित्र में भगवती के संग उपनयन संस्कार बेर में जे मुख्यविधि होय छहि तकर झलक देल गेल अछि |

Sunday, August 15, 2010

Deviji episode: 8


                            एक दिन देवीजी विद्यालय दिस आबिये रहल छली की कोनो गाड़ी के बरी जोर स ब्रेक लगाबाई के आवाज सुनाई देलकैन | घुरी क तकली त एकटा कार के टेढ़ भ क रुकल पौली | गाडीक ड्राइवर एकटा बच्चा के डाँटि रहल छल | संजोग स ओ बच्चा हुनके विद्यार्थी छलैन आ ओकरा चोट नहिं लागल छलइ | लोक सब सेहो जमा हुआ लागल| लोकसब अपन गामक बच्चा के पक्ष ल उनटे कार चालक पर बाजि रहल छल | देवीजी ओत पहुँचली | ओ कनिक हाल त अपने देखने रहैथ ताहि कारने हुनका कोनो संदेह नहि रहैन जे अहि में गलती बच्चे के रहय | तखनो ओ बालक आ लोक सब स पुछली त ज्ञात भेलैन जे गाड़ी नजदीक रहै तैयो ओ बच्चा दौड़क  सड़क पार केनाई शुरू केने रहय | ओ गाड़ीवान स माफी मंगली आ ओकरा समय पर गाड़ी रोकय लेल धन्यवाद देलखिन |
                          तकर बाद देवीजी ओहि विद्यार्थी संगे विद्यालय विदा भेली | रास्ता भरि ओकरा यातायात क सुरक्षा द बुझाबैत रहली | कहलखिन जे सड़क पर चलै काल कोनो बातक हड़बड़ी नहिं करैके चाही | दुर्घटना ककरो गलती स भ सकैत छहि तखन ओ गाड़ी चलेन्हार होई अथवा पदयात्री | अपना दिस स जरुर सावधान रहै के चाही |  अपन सावधानी स दुर्घटना रोकल ज सकैत छहि |



Deviji episode: 7


                  बाढ़िक खबर सs सब दुखी छल | कतेक ठाम तs विद्यालय बंद भs गेल छल | देवीजी केर  विद्यालय संजोग सs बाढ़ि सँ बाँचल  रहैन्ह मुदा ओहि ठाम बाढ़ी केर  प्रकोप सँ बिल्टल लोकक कैंप लागल छल | देवीजीक सेवाभाव फेर सब विद्यार्थी एवं शिक्षकगणके एकजुट भs सामाजिक कार्य करय लेल उत्साहित केलकैन |
                ओ सभ गौंवासबसs भोजन, पाई, कपडा आदि जमा करि कs कैंप में बँटलैथ | दवाई के इंतजाम सेहो कैल गेल | ओहि कैंप में आयल बच्चा सबके ल क देवीजी अपन विद्यार्थी सबहक पढ़ाई सेहो प्रारंभ केली | तखन अहि विपदा के विषय में चर्चा उठल | ताहि पर देवीजी सबके पर्यावरण के बढ़ैत तापमान के जानकारी देलखिन |
                ओ कहलखिन, "सब जगह तापमान बढ़लाक कारण हिमनद सब घमी रहल अछि| ताहि पर स हिमालय पर विश्व के सबस उंच आ विशाल हिमनद सब स्थित छहि जे गर्मी स घमी रहल छहि | ओकर पानि हिमालय स निकलैत नदी सब में आबी गेल छहि | ताहि कारण स ई विपदा आयल छहि| आकर रोकय लेल नदी सबके किनार मज़बूत भेनाई बड आवश्यक अछि जाहि में सामान्य जनता वृक्षारोपण क अपन योगदान द सकैत छथि | बांह बनौनई त सरकार द्वारा कैल जायत मुदा जगह जगह वृक्षारोपण क तापमान नियंत्रण आ माटिक कटाव पर रोक हम सब लगा सकैत छी| जौं मेघ के लौह मानी त गाछ के चुम्बक मानू | गाछ रहला स बरखाक अभाव सेहो दूर होयत छहि | "
              देवीजीक अहि बात सs प्रभावित भs सबकियो खाली पड़ल ज़मीन पर तथा सड़क के काते कात गाछ लगोलथी | कैम्पक लोक सब इहो मोन बनेला जे अपन गाम घुरलापर ओ सब ओहि ठाम सेहो वृक्षारोपण करता आ वृक्ष के अनायास काटय पर रोक लागौताह |

Saturday, August 14, 2010

विद्यापति गीत


कवि कोकिल विद्यापति
(कवि कोकिल विद्यापति मिथिला के घर घर में अब भी अपनी रचनाओं के माध्यम से बसे हैं . ऐसा कोई भी शुभ कार्य  नहीं जहाँ विद्यापति की रचनाओं को ना गाया जाता हो . शुभ कार्यों में भगवती या देवी स्तुति तो आवश्यक है . मिथिला वासी शिव शक्ति की पूजा करते हैं  और हर शुभ  कार्य का प्रारंभ देवी की स्तुति से होता है . प्रस्तुत है विद्यापति रचित देवी स्तुति . )
"कनक भूधर "

कनक-भूधर-शिखर-बासिनी
चंद्रिका-चय-चारु-हासिनि
दशन-कोटि-विकास-बंकिम-
तुलित-चंद्रकले ।।

क्रुद्ध-सुररिपु-बलनिपातिनि
महिष- शुम्भ-निशुम्भघातिनि
भीत-भक्त-भयापनोदन -
पाटव -प्रबले।।

जे देवि दुर्गे दुरिततारिणि
दुर्गामारी - विमर्द -कारिणि
भक्ति - नम्र - सुरासुराधिप -
मंगलप्रवरे ।।

गगन - मंडल - गर्भगाहिनि
समर - भूमिषु - सिंहवाहिनि
परशु - पाश - कृपाण - सायक -
संख -चक्र-धरे ।।

अष्ट - भैरवी - सँग - शालिनी
स्वकर - कृत - कपाल- मालिनि
दनुज - शोणित -पिशित - वर्द्धित-
पारणा-रभसे।।


संसारबन्ध - निदानमोचिनी
चन्द्र - भानु - कृशानु - लोचनि
योगिनी - गण - गीत - शोभित -
नित्यभूमि - रसे ।।

जगति पालन - जन्म - मारण -
रूप - कार्य - सहस्त्र - कारण -
हरी - विरंचि - महेश - शेखर -
चुम्ब्यमान - पड़े। ।

सकल - पापकला - परिच्युति-
सुकवि - विद्यापति - कृतस्तुति
तोषिते - शिवसिंह - भूपति -
कामना - फलदे।। 

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कोकिल विद्यापति देवी की वन्दना करते हुए कहते हैं :

हे सुमेरु पर्वत पर निवास करने वाली , शुभ्र ज्योत्सना की तरह मुस्कान बिखेरनेवाली देवी आप अपने दन्त पंक्तियों के बंकिम विकास से चन्द्रकला को उपमित करती हैं .क्रुद्धावस्था में शत्रुओं के बल का विनाश करनेवाली, महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ का संहार करनेवाली हे देवी .....आप भयभीत भक्त के भय को दूर करने में प्रवीन हैं . पाप मुक्त करनेवाली, कठिन शत्रुओं का विनाश करनेवाली तथा भक्ति भाव से विनम्र हुए देवासुरों का कल्याण करनेवाली हे देवी दुर्गे ...आपकी जय हो ! अथाह आकाश मंडल में विचरण करनेवाली सिंह पर सवार हे देवी ! आप समर भूमि में अपने हाथों में परशु, पाश , कृपाण, वाण, शंख आ चक्र धारण किये रहती हैं . आठों भैरवियों को साथ रखनेवाली हे देवी .....आप आनंद प्रदायिनी हैं. चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान नेत्र वाली, संसार के बंधनों के कारणों से छुटकारा दिलानेवाली हे देवी ! संसार की उत्पत्ति पालन और संहार करनेवाली हे देवी आप हज़ारों रूप में कार्यों को सिद्ध करने हेतु हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु और महेश का मस्तक लगातार आपके चरणों को स्पर्श करता है . सभी पापों से मुक्ति दिलानेवाली हे देवी कवि विद्यापति आपकी स्तुति करते हैं और राजा शिव सिंह की कामना के अनुरूप फल प्रदान करें .  



Saturday, August 7, 2010

Deviji episode: 6


                               आहि  ५ सितम्बर क विद्यालय में शिक्षक दिवस के आयोजन छल | सब शिक्षक शिक्षिका अतिथि रहैथ आ सब कार्यक्रम विद्यार्थी द्वारा प्रस्तुत छल | तरह तरहक रंगरंग कार्यक्रम प्रस्तुत कैल गेल जाहि स सब अध्यापक बहुत प्रसन्न भेला | अहिबातक चर्चा विस्तृत रूप स भेल जे ई तिथि देश के प्रथम उपराष्ट्रपति तथा द्वितीय राष्ट्रपति स्वर्गीय महोदय सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मतिथि छैन | भारतीय दर्शन शास्त्रक मान्यता के पश्चिमी सभ्यता में मान्य बनाबई में हुनकर योगदान अविस्मर्णीय छैन | महोदय १९५२-१९६२ तक उपराष्ट्रपति रहला तथा १३ मई १९६२ स अगिला पांच साल तक राष्ट्रपति के पद पर रहला | जखन ओ राष्ट्रपति भेला त हुनकर विद्यार्थी सब हुनकर जन्मदिवस मनाबय के अनुमति मांग गेलनि | ओ कहलखिन जे हमर जन्मदिनक आडम्बर के बदले अहि दिन के शिक्षक दिवस के रूप में मनाकय हमरा गर्वित करू | तहिये स ई प्रथा प्रारंभ भेल | 
                         अहि दिन सब विद्यार्थी अपन शिक्षक के प्रति अपन आभार आ सम्मान प्रकट करैत छथि | करियो के चाही| कहल गेल छहि - "गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काको लागुन पाँव, धन्य गुरु आपनो गोविन्द दियो दिखाय |" संस्कृत में सेहो कहल गेल छाहि -"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः , गुरु: साक्षात् परमब्रह्म: तस्मै श्रीगुरवे नमः |"
                          सबकियो अन्य शिक्षक शिक्षिका संगे देवीजी के प्रति अपन विशेष आभार प्रकट केलक | अंत में प्रधानाचार्य अपन भाषण में विद्यार्थिक प्रशंसक अतिरिक्त अहि बात पर विशेष जोर देलखिन जे शिक्षक देशक भविष्य- निर्माता होइत छैथ तै हुनका अपन सदाचरण स विद्यार्थी लग एक आदर्श प्रस्तुत करैके चाही | शिक्षक के जिम्मेवारी पर जोर देलक बाद कार्यक्रम समाप्त भेल | सब अपन घर दिस विदा भेला कारण आहि अवकास छल |

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Deviji episode: 4

                      गामक विद्यालयमें  प्रतिदिन व्ययामक शिक्षा देल जायत छल ; प्रर्थानक समय, कक्षामें जय स पहिने | कतेक विद्यार्थीके ई बहुत कष्टकर लागैत छलय| ओ सब प्रार्थना काल प्रतिदिन नुका जाय छल | शिक्षक सब स ई बात नुकायल नहिं रहल | ओ सब बच्चा सबहक अहि काज स बहुत अप्रसन्न भेला | सब कियो देविजिके नियुक्त केला बच्चा सबके बुझाबय लेल | देवीजी पता करय लगली जे ओ सब कतय नुकायत अछि | बेसी देर नहिं लगलैन ई ज्ञात करैत जे बच्चा सब कक्षा में बेंच के नीचा नुकायत छल | एक दिन देवीजी जखन प्रार्थना चलै छल सब कक्षा में जाक तकनाई शुरू केली | किछु बच्चा सब ठीके नुकायल छलाह |
                         देवीजी तत्काल ओकरा सबके प्रार्थना में पठेलखिन | तकर बाद ओकरा सबके व्ययामक महत्ता बुझेलखिन | ओ कहलखिन जे व्यायाम शारीरिक आ मानसिक दुनु विकासक लेल अत्यंत आवश्यक अछि | अहि स स्फूर्ति आबैत छहि | भोरे भोर व्यायाम केला स दिन भरि मोन प्रसन्न रहैत छहि आ सबकाजमें बढ़िया मोन लागैत छहि | जहिना जीवित रहैलेल भोजन आवश्यक छहि तहिना स्वस्थ रहै लेल कसरत आवश्यक छहि | कसरत स्वस्थ जीवन के आधार होइत छहि | तकर बाद देवीजी व्यायामक शिक्षक के रोचक ढंग स व्यायाम करबै के परामर्श देलखिन आ आन शिक्षक सबके सेहो संगे व्यायाम करैके अनुरोध केलखिन | सब हुनकर बात मानलैथ | बच्चो सब व्यायाम स भागनाई छोरलक | देवीजी पुनश्च अपन कार्य में सफल भेली |

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Saturday, July 31, 2010

Deviji episode: 3


                          एक बेर देवीजी विद्यालय आबी रहल छली त द्वार लग हुनका एकटा चिनिया बादाम बेचयवला बड उदास देखेलैन | हुनका स नहि रहल गेलैन | ओ ओकरा लग जा कय पुछलखिन "एही उदासी के की कारण" ? जवाब में जे सुनै भेटलैन ताहि स हुनकर मोन क्षोभ स भरी गेलैन | हुनकर विद्यालय के किछु छात्र ओकरा स चिनिया बादाम खा क पाई नहि देलकै | अगिला दिन ओ खोम्चावला गरीब छल | ओकर बड नुक्सान भेलै | ताहि ल क ओ बड दुखी छल |
                           देवीजी ओकरा प्रधानाध्यापक लग ल गेलखिन | प्रधानाचार्य के सेहो अपन विद्यार्थी सबहक ई कुकर्म बहुत क्षोभित केलकैन | ओ देवीजी के संग मिलिक उपद्रवी बच्चा सबके अपन अपन अभिभावक संगे बजेलखिन | सब उपद्रवी बच्चा सबके विद्यालय स निष्कासित कराय के बात भेल | तखन बच्चा सब माफ़ी मंगलक | देवीजी ओकरा सबके बुझेलखिन जे गरीबी द्वारे ओ व्यक्ति विद्यालय लग खुमचा लगाक दू पाई कमाइत अछि जाहि स ओकर परिवार चलैत छई | अहि घटना स ओकर बड हनी भेलै | ओकर खेने पिनाई तक के कष्ट भ गेलै |
                             तखन बच्चा सब अपन गलती के पश्चाताप करै के विचार बनेलक | देवीजी के आगया ल ओ सब टूटल खुमचा के मरम्मत केलक आ चंदा जमा क जतेक समान लुटने छल से किन क लौटेलक | सब कियो ई शपथ लेलक जे कहियो फेर एहेन काज नहिं करत आ गरीब के यथा संभव सहायता करत |

Deviji episode: 5


                                             विद्यालय में आही बहुत हलचल छल | बड़का सरकारी गाड़ी सामने ठाढ़ छल |बच्चा सबके किछु नहि बुझा रहल छल | सब  उत्सुक भ विद्यालयक में प्रवेश केलक |  बादमें प्रार्थनाक उपरांत प्रधानाध्यापक सबके सूचित केलखिन, "सरकार के दिस स ई निर्देश आयल अछि जे हम देश स निरक्षरता हटाबई में सरकार के मददि करियै |ताहि लेल सरकार दिस स पुस्तक आ आन सामग्री प्रदान कैल गेल अछि | भारत वर्ष निरक्षरता में विश्वमें सबस आगाँ अछि आ बिहार राज्य अपन देश में साक्षरता आ स्त्री शिक्षा में सबसा पाछाँ अछि | हमरा सबके अहि के हटाबई मैं योगदान देबाक चाही" |
                       विद्यार्थी सब अहिमें काज करैलेल तैयार छल | सब देवीजी स पुछलक जे की करै पड़तै |त देवीजी सबके पढ़ाबई के तरीका सिखेलखिन | अगिला दिन सौंसे गाम में बात आगि जकां पसरी गेल जे प्रतिदिन सांझ क बुजुर्ग सबके आ जे बच्चा सबके आर्थिक कमजोरी के कारण शिक्षा नहिं भेट रहल छही तकरा सबके बिन खर्चा के साक्षर बनाओल जायत | सबके आमंत्रित कैल गेल |   
                        आब प्रतिदिन सांझ में जमौरा लाग लागल | विद्यार्थी सब शिक्षक सबके पढ़ाबई में व्यस्त भ गेल | गर्मी के छुट्टी में सेहो सब अहि काज में लागल रहल | दुए तीन महिनाक प्रयास स गामक सब बढ़ बुजुर्ग स ल क आर्थिक आभाव स त्रस्त निरक्षर बच्चा सब साक्षर भ गेल | सबस लाभ स्त्री सबके भेलैन जिनका सबके ई सुविधा भेटबाक कोनो आशा नहिं छलैन | गाममे  अखबारक खपत बढ़ी गेल | आब बुढ़ियो सब बात करय लगली जे देश में कोन पार्टी के बहुमत छें आ के प्रधानमंत्री छैथ | गीत नाद सेहो लिखी क राखै लगली | मिथिलांचल जतय स्त्री सर्वथा सम्मानित रहल मुदा शिक्षाक क्षेत्र में ओकर भाग्य कनी कमजोर छल ताहू के दूर करक ई प्रयास आगामी उज्जवल भविष्यक प्रतीक छल | स्त्रीशिक्षाक एहेन दीप प्रज्वलित करै लेल विद्यालय के सरकार दिस स सम्मानित कैल गेल | प्रधानाध्यापक आ सब शिक्षक सब अपन विद्यालयक छात्र सबहक बहुत प्रशंसा केलखिन जे ओकर सबहक तन्मयता स ई काज संपन्न भेल | फेर अगिला अवकास में अहि अभियान के आगा बढ़ाबई के विचार कैल गेल |  

Sunday, July 25, 2010

डोली पर बैसल कनिया ( Bride going to her husband's house )

डोली पर बैसल कनियक  चित्र के मधुबनी \ मिथिला चित्रकला शैली  में नाओल गेलअछि| पहिने कनिया के विदाई महफा पर होयत छल | संग में पनिक कलश बहुत शुभ मानल जायत छलय |

 
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