"गंगा स्तुति "
प्रातः वंदन करय छी हे गंगे
कल कल सुनि मोन हर्षित हे गंगे
दिय दर्शन सब दिन हे गंगे
हरु विघ्न बस एतबहि हे गंगे
लहरि लहरि सत राग हे गंगे
मुग्ध मोन भेल अनुराग हे गंगे
करू मिनती स्वीकार हे गंगे
क्षमा माँगय छी दिय सदगति हे गंगे
नेह निनानिद पुनमति हे गंगे
कुसुम निहारि भेली धन्य हे गंगे
- कुसुम ठाकुर -
2 comments:
bahut accha laga dekhkar...
apni parampara ko jeevit rakne ka ek anootha prayas hai kohbar ke madhyam se.. badhayeee
http://tendertwines.blogspot.com/
http://bridalcreeper.blogspot.com/
लतिका जी बहुत बहुत धन्यवाद !!
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