Saturday, December 11, 2010

अभिनव पल्लव


"कवि कोकिल विद्यापति"

अभिनव पल्लव बैसक देल 
धवल कमल फुल पुरहर भेल 

करू मकरंद मंदाकिनि पानी 
अरुन असोग दीप दहु आनि

माई हे, आज दिवस पुनमंत
करिअ चूमाओन राय बसंत 

संपून सुधानिधि दधि भल भेल 
बहामी बहामी भमर हकारय गेल 

केसु कुसुम सिंदूर सम भास् 
केतकि धूलि बिथरहु पटबास

भनइ  विद्यापति कवि कंठहार
रस बुझ सिवसिंह सिव अवतार 

उपरोक्त पंक्तियों में कवि विद्यापति बसंत ऋतु का स्वागत करते हुए कहते हैं कि : नए पल्लव को आसन के रूप में रखा गया है तथा श्वेत कमल को कलश के रूप में . पुष्प रस (मकरंद) गंगाजल और अशोक के नए लाल कोमल पत्ते को दीप के रूप में सजा दिया गया है. वे कहते हैं हे, दाई माई आओ इस शुभ दिन में राजा बसंत का चुमावन की जाए. पूनम का चाँद दही का कम कर रहा है. भंवरा घूम घूम कर सबको हकार (निमंत्रण) दे रहा है. पलास (टेसू ) का फूल सिंदूर जैसा लग रहा है. केतकी (केवडा) का पराग सुगन्धित चूर्ण के रूप में प्रयोग हो रहा है . कवि कंठहार कहते हैं कि इसका रस शिव अवतार राजा शिव सिंह समझते हैं. 
  


6 comments:

मनोज कुमार said...

बड नीक लागल पढि कय। आहां क आभार।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मनोहारी पंक्तियाँ .....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत गीत का चयन

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

कुसुम ठाकुर जी कवि कोकिल 'विद्यापति' जी के वसंत ऋतु पर आधारित गीत को उपलब्ध कराने के लिए बहुत बहुत आभार| ऐसे प्रस्तुतियाँ कम हो पढ़ने को मिलती हैं आज कल|

अनुपमा पाठक said...

सुन्दर प्रस्तुति!

Kusum Thakur said...

आप सबों का आभार ...मैं बराबर विद्यापति की रचनाएँ इस ब्लॉग पर
डालती रहती हूँ अर्थ के साथ .

 
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