Friday, December 2, 2011
Tuesday, November 22, 2011
Tulasi Vivah
तुलसी विवाह : तुलसी पौधे को हिन्दू धर्मं में एक पवित्र पौधा माना गया है और तुलसी विवाह के दिन वृंदा देवी अर्थात तुलसी जी का विवाह विष्णुदेव या उन्ही के अवतार कृष्ण देव से कराया जाता है | यह पर्व मुख्यतः प्रदोषणी एकादशी को मनाया जाता है पर इसे प्रदोषणी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा के बीच किसी दिन भी मनाया जा सकता है| इस दिन एक दुल्हन के चहरे के चित्रकला को एक छड़ी से जोड़कर तुलसी के पौधे के बीच रख दिया जाता है और चूनर और अन्य सिंगर से पौधे को दुल्हन की तरह सजाया जाता है | फिर श्याम शालिग्राम से उनका विवाह रचाया जाता है | कुछ धर्मावलम्बी तुलसी जी को लक्ष्मी जी का ही रूप मानते हैं |
Friday, November 11, 2011
सामा चकेवा !
सर्दियों में पक्षी हिमालय से विस्थापित हो समतल भूमि पर आ जाते हैं, जहाँ सर्दी कम पड़ती है. इन खूबसूरत और रंग बिरंगे पक्षियों के आगमन के उपलक्ष और स्वागत में मिथिला में सामा चकेवा त्यौहार के रूप में मनाई जाती है जिसे भाई बहन के पवित्र रिश्ते को समर्पित किया जाता है.
बहने इस त्यौहार के माध्यम से अपने भाई के लम्बी उम्र की कामना करती हैं. यह त्यौहार सामा चकेवा नामक पक्षी के जोड़े के आगमन और स्वागत से शुरू होती है. बहने तरह तरह के मिट्टी से पक्षी बना उन्हें पारंपरिक तरीके से सजाती हैं. इस त्यौहार का अंत इस उम्मीद के साथ किया जाता है कि पक्षी फिर अगले वर्ष आवें और इसे सामा चकेवा की बिदाई के रूप में की जाती है. कहा जाता है कि सामा अपने ससुराल चली जाती है.
छठ के पारण यानि कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सामा चकेवा शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा को सामा चकेवा की बिदाई की जाती है. सामा चकेवा पक्षियों की जोड़ी जो इस त्यौहार में सबसे ज्यादा महत्त्व रखता है छठ के पारण यानि कार्तिक शुक्ल सप्तमी को मिट्टी से सामा चकेवा की जोड़ी बनाई जाती है. बाकी सारी मूर्तियाँ जिनमे चुगला, वृन्दावन, बटगमनी इत्यादि कार्तिक शुक्ल एकादशी यानि नरक निवारण एकादशी तक पूरा किया जाता है. कहते है एकादशी के दिन ही सामा के ससुराल जाने का दिन तय होता है और इस दिन से सारी मूर्तियों को रंगना सजाना शुरू हो जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन सामा की बिदाई हो जाती है.
प्रतिदिन रात्रि समय बहने एक बांस की टोकरी में अपनी अपनी मूर्तियों को रख साथ ही एक दिया जलाकर जुते हुए खेतों में अपने भाइयों के साथ जाती हैं. बहने अपने अपने भाइयों के लम्बी उम्र की कामना मनोरंजक तरीके से करती हैं. भाई भी इस खेल में उपस्थित रहते हैं. यह सिलसिला प्रतिदिन रात्रि में होता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहने अपने भाइयों के साथ खेतों में जाती हैं और मूर्तियों को भाइयों के घुटने से तुड़वा उनकी लम्बी उम्र की कामना के साथ सामा चकेवा का विसर्जन कर देती हैं. भाइयों को मिठाई खिला अगले वर्ष फिर सामा चकेवा के आने की कामना के साथ घर वापस आ जाती हैं.
Thursday, November 3, 2011
Diwali in Madhubani Painting
दीपावली
दीपावली में हर जगह दिया जलाये जाने की प्रथा है। वैसे तो आजकल बिजली के बल्ब की लड़ियों से सभी जगह रंग बिरंगी रोशनी फैली होती है पर पहले दिवाली में पूजा और दिया का ही महत्व होता था। घर में पूजा के बाद तुलसी के सामने दिया और घर के बाहर यम दिया जलाया जाता है। उसके बाद सभी जगह दिया की जगमगाहट बिखेरी जाती है। इस चित्रकला में आकाश के तारों की तुलना अष्टदल वाले अल्पना से की गयी है जिसे देवी लक्ष्मी और विष्णुदेव के पूजा में बनाया जाता है।
Saturday, October 29, 2011
सूर्य उपासना का पर्व छठ.
बिहार का महा पर्व छठ रविवार को नहाय खाय के साथ प्रारम्भ हो जायेगा. छठ में सूर्य भगवान की आराधना की जाती है और छठ के दिन डूबते हुए सूर्य की पूजा होती है. उसके दूसरे दिन उगते हुए सूर्य की पूजा कर पारण यानि व्रत तोड़ा जाता है.
नहाय खाय को नहाकर बिलकुल सात्विक भोजन की जाती है. इस दिन व्रती अरवा चावल मूंग की दाल एवं लौकी (कद्दू ) की सब्जी खाती हैं और व्रती के खाने के बाद परिवार के सभी सदस्य भी वही खाते हैं. सोमवार को खरना है, इस दिन व्रती दिन भर व्रत रख शाम में नियम निष्ठां से प्रसाद चढ़ाकर एक बार खीर खाती हैं यहाँ तक कि पानी भी उसी समय यानि एक बार ही पीती हैं. उसके बाद प्रसाद वितरण होता है
मंगलवार को छठ है और इस दिन व्रती सारा दिन उपवास रख शाम में किसी नदी या तालाब के किनारे जाकर डूबते हुए सूर्य भगवान को दूध एवं जल से अर्घ दे आराधना करती हैं. बुद्धवार को पारण है इस दिन सुबह सूर्योदय के समय सूर्य भगवान् को अर्घ देने के बाद प्रसाद वितरण कर व्रती पारण करती हैं.
सूर्य का यह व्रत बिहार में औरतें बड़े ही निष्ठां एवं भक्ति से करती हैं. मिथिला में इस दिन का एक और महत्त्व है. इस दिन से बहनें अपने भाईयों की मंगल कमाना के लिए सामा चकेबा खेलती हैं. सामा चकेबा में मिटटी की मूर्तियाँ बनती है और प्रतिदिन रात में खेला जाता है.
Friday, October 28, 2011
भ्रातृद्वितीया
हिन्दुओं में किस्सा प्रचलित है कि यम की बहन यमुना थी. यमुना अपने भाई को कई बार आने का निमंत्रण दी परन्तु संयोग वश यम नहीं जा पाते. आख़िरकार एक दिन यम अपनी बहन यमुना के पास पहुँच ही गए और वह दिन कार्तिक शुक्ल द्वितिया था. यमुना ने अपने भाई का खूब स्वागत किया और खुद तरह तरह के व्यंजन बनाकर अपने भाई यम को खिलाई. यम प्रसन्न हो यमुना से वर मांगने को कहा. बहन ने भाई से वरदान माँगा कि " जो भाई अपनी बहन के घर इस दिन जायेगा उसे नरक या अकाल मृत्यु प्राप्त नहीं हो". तब से इस दिन को भ्रातृद्वितिया के रूप में मनाया जाता है.
कार्तिक शुक्ल द्वितिया को भारत वर्ष के हर राज्य में भाई के दिन के रूप में मनाई जाती है. कहीं भाई दूज कहते हैं तो कहीं भाई फोटा(तिलक). मिथिला में इस पर्व को भ्रातृद्वितिया कहते हैं. इस दिन भाई अपनी बहन के यहाँ जाता है. जिसे मिथिला में न्योत (न्योता) लेना कहते हैं. इस दिन बहनों को अपने भाइयों के आने का इंतज़ार रहता हैं. बहनें अपने आंगन में अरिपन देकर भाई के लिए आसन बिछा, एक पात्र में सुपाड़ी,लौंग, इलाइची,पान का पत्ता, कुम्हर( जिससे पता बनता है उसका फूल) का फूल और सिक्का डालकर रखती हैं. साथ ही एक कटोरे में पिठार( गीला पिसा हुआ चावल), सिन्दूर और एक लोटे में जल भी रखती हैं.
भाई दोनों हाथों को जोड़कर आसन पर बैठता है और बहन उसके हाथों पर पिठार लगा हाथों में पान, सुपाड़ी इत्यादि दे न्योत लेती हैं और बाद में उसे उस पात्र में गिरा हाथ धो देती हैं. इस तरह से तीन बार न्योत लेती है और भाई को पिठार और सिन्दूर का तिलक लगा मिठाई खिला देती हैं. अगर भाई बड़ा हो तो उसे पैर छूकर प्रणाम करती हैं और छोटा हो तो भाई बहन के पैर छूकर प्रणाम करता है. भाई बहन के प्यार का अनूठा पर्व है भ्रातृद्वितिया.
आजकल के भागदौड़ की जिनदगी में समयाभाव की वजह से भाइयों का आना जाना कम तो हुआ है परन्तु टेलीफ़ोन की सुविधा ने इस कमी को कम तो नहीं किया पर थोड़ी बहुत संतुष्टि अवश्य मिलती है. सभी अपने भाई बहनों से कम से कम बातें तो कर ही लेते हैं और आशीर्वाद अवश्य देते हैं.
Sunday, October 16, 2011
भगवती गीत (भय हरण कालिका )
"भय हरण कालिका"
जय जय जग जननि देवी
सुर नर मुनि असुर सेवी
भुक्ति मुक्ति दायिनी भय हरण कालिका।
जय जय जग जननि देवी।
मुंडमाल तिलक भाल
शोणित मुख लगे विशाल
श्याम वर्ण शोभित, भय हरण कालिका।
जय जय जग जननि देवी ।
हर लो तुम सारे क्लेश
मांगूं नित कह अशेष
आयी शरणों में तेरी, भय हरण कालिका ।
जय जय जग जननि देवी ।
माँ मैं तो गई हूँ हारी
माँगूं कबसे विचारी
करो अब तो उद्धार तुम, भय हरण कालिका ।
जय जय जग जननि देवी ।
-कुसुम ठाकुर-
Thursday, October 6, 2011
Saturday, October 1, 2011
Kalash in Madhubani Painting
शुभ कलश : ई एकटा नब प्रयास अछि | जेना कोहवर में शुभ वस्तुक समावेश रहैत अछि तहिना अहि में किछु शुभ वस्तुक समावेश कायल गेल अछि |अपना सब में जल स भरल कलश आ आमक पल्लव बहुत शुभ मानल जायत अछि| तकर अतिरिक्त दीप , माछ आदि के सेहो शुभ मानल जायत अछि | वीणा के सरस्वती देवी के प्रतीक मानल गेल अछि आ आठ टा आमक पल्लव अष्टविनायक के प्रतीक मानल गेल अछि | अहि चित्रकला के ईलिंग आर्ट ग्रुप के वार्षिक प्रदर्शनी में लगोल गेल छल जे कि संयोग स गणेश पूजा के समय में आयोजित छल |
Monday, September 19, 2011
भजन श्याम सुन्दर का करते रहोगे
"अपनी बड़ाई से डरते रहोगे"
भजन श्याम सुन्दर का करते रहोगे
तो संसार सागर से तरते रहोगे
कृपानाथ वे शक मिलेंगे किसी दिन
जो सत्संग पथ से गुजरते रहोगे
तो संसार .................................
चढोगे ह्रदय पर सभी के सदा तुम
जो अभिमान गिरी से उतरते रहोगे
तो संसार...............................
न होगा कभी क्लेश मन को तुम्हारे
जो अपनी बड़ाई से डरते रहोगे
तो संसार ..............................
छलक ही पड़ेगा दया सिन्धु का दिल
जो दृग बिंदु से रोज भरते रहोगे
तो संसार..............................
छलक ही पड़ेगा दया सिन्धु का दिल
जो दृग बिंदु से रोज भरते रहोगे
तो संसार..............................
Friday, September 16, 2011
Thursday, June 30, 2011
Monday, April 18, 2011
गाईये गणपति जग बंदन !!
"गणपति वंदना"
गाईये गणपति जग वंदन,
शंकर सुवन भवानी के नंदन.
सिद्धि सदन गज बदन विनायक,
कृपा सिन्धु सुन्दर सब लायक.
गाईये गणपति जग वंदन,
शंकर सुवन भवानी के नंदन.
मोदक प्रिय मुद मंगल दाता,
विद्या बारिधि बुद्धि विधाता.
गाईये गणपति जग वंदन,
शंकर सुवन भवानी के नंदन.
मांगत तुलसी दास कर जोरे,
बसहूँ राम सिय मानस मोरे.
गाईये गणपति जग वंदन,
शंकर सुवन भवानी के नंदन.
Thursday, March 17, 2011
Ardhanareeshwar(अर्धनारीश्वर)
Madhubani Painting
Mother Shakthi once propitiated Lord Shiva with such fervent intensity that she be part of him in body and mind. Her pleased husband through his divine powers granted her this wish. The Master then absorbed her in half of himself and thus was created the half-man half-woman aspect of Lord Shiva, symbolising the oneness of all beings.
Wednesday, March 2, 2011
Tuesday, March 1, 2011
गौरा तोर अंगना ( विद्यापति पद )
फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी को महा शिव रात्रि मनाया जाता है. इस दिन देवाधि देव शिव शंकर का माँ गौरी से विवाह हुआ था. अतः शिव विवाह के रूप में मनाया जाने वाला यह पर्व है. जिसे हर क्षेत्र के लोग बड़े ही श्रद्धा से मनाते हैं. कहते हैं भोले नाथ बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं अतः लोग इस दिन व्रत रख भोले नाथ की प्रिय वस्तु भांग धतुरा और बेल पत्र चढ़ा पूजा अर्चना करते हैं.
विद्यापति की भक्ति से प्रसन्न हो साक्षात भोले नाथ उनकी चाकरी करने उनके पास आ गए थे. शिवरात्रि के अवसर पर विद्यापति का यह गीत:
"गौरा तोर अंगना"
गौरा तोर अंगना,बर अजगुत देखल तोर अंगना।
एक दिस बाघ सिंह करे हुलना ।
दोसर बरद छैन्ह सेहो बओना।।
हे गौरा तोर ................... ।
कार्तिक गणपति दुई चेंगना।
एक चढथि मोर एक मुस लदना ।।
हे गौर तोर ............ ।
पैंच उधार मांगए गेलहुँ अंगना ।
सम्पति देखल एक भाँग घोटना ।।
हे गौरा तोर ................ ।
खेती न पथारी शिव गुजर कोना ।
जगतक दानी थिकाह तीन-भुवना।।
हे गौरा तोर ............... ।
भनहि विद्यापति सुनु उगना ।
दरिद्र हरन करू धएल सरना ।।
"कवि कोकिल विद्यापति"
इन पंक्तियों में विद्यापति कहते हैं : हे गौरी ! आपके आंगन में अजीब बात देखा. एक तरफ बाघ, सिंह हुलक रहे थे, दूसरी तरफ एक बौना बैल भी था. कार्तिक और गणपति नाम के दो बच्चों को भी देखा. एक मयूर पर चढ़ा हुआ तो दूसरा मूस यानि चूहे पर लदा हुआ था. उधार माँगने के उदेश्य से गया था, मगर संपत्ति के नाम पर मात्र भांग घोटना (भांग घोटने वाला ) दिखा. शिव खेती नहीं करते बस भांग में मस्त रहते हैं. सच, वह तो दानी हैं, संसार के तीनो भुवन. विद्यापति कहते हैं - हे शिव ! मैं आपकी शरण में आया हूँ, मेरा दारिद्र हरण करें.
Friday, February 25, 2011
शम्भु शंकर तेरी महिमा
"अब दर्शन दे दो हे महेश्वर"
शंकर शम्भो तेरी महिमा,
सुमिरत निश दिन ध्यान लगावें
ध्यान लगावे शिवपुर पावें
बम बम बम बम बम बम बम
बीच भ्रमर में नाव डूबत है
पार लगा दो हे प्रलयंकर
तीनो लोक चरण में तेरे
शरण में आई हे परमेश्वर
रूद्र रूप हो सर्वसंघारी
नतमस्तक हूँ हे चंद्रशेखर
आस लगाए बैठी कब से
अब दर्शन दे दो हे महेश्वर
-कुसुम ठाकुर-
Wednesday, February 16, 2011
माँ सरस्वती (Goddess Saraswati)
देवी सरस्वती
या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता |
या वीणावरदंड मंडितकरा या श्वेतपद्मासना ||
Salutations to the supreme Goddess Saraswati whose face is fair as a jasmine flower, luminiscient like the moon and delicate as a snow flake ; who is dressed in radiant white garments . She holds the musical instrument called veena in her hands to bestow boons to her disciples as she sits on her white lotus .
Thursday, February 3, 2011
माधव कत तोर करब बड़ाई.
"कवि कोकिल विद्यापति"
माधव कत तोर करब बड़ाई
उपमा तोहर कहब ककरा हम, कहितहुं अधिक लजाई
जओं सिरिखंड सौरभ अति दुर्लभ, तओं पुनि काठ कठोरे
जओं जगदीस निसाकर, तओं पुनि एकहि पच्छ इजोरे
मनिक समान आन नहि दोसर, तनिक पाथर नामे
कनक सरिस एक तोहिं माधव, मन होइछ अनुमाने
सज्जन जन सओं नेह कठिन थिक, कवि विद्यापति भाने
उपरोक्त पक्तियों में कवि विद्यापति कहते हैं .....हे श्री कृष्ण मैं आपका गुणगान कैसे करूँ, आपकी तुलना किससे करूँ. मुझे तो तुलना करने में भी संकोच हो रहा है . यदि आपकी तुलना दुर्लभ श्री खंड से करता हूँ तो दूसरी तरफ वह कठोर भी तो है. यदि आपकी तुलना दुनिया को रोशनी से उजाला करने वाले चन्द्रमा से करता हूँ तो वह भी तो मात्र एक ही पक्ष के लिए होता है. मणि-माणिक्य से दामी एवम सुन्दर दूसरा कुछ नहीं होता, पर आखिर है तो पत्थर ही. उससे आपकी तुलना कैसे करूँ ? सोना के समान दमकते हुए केला से भी आपकी तुलना नहीं की जा सकती वह भी आपके आगे बहुत छोटा पड़ जाता है. मेरा अनुमान बिल्कुल सही है आपके समान दूसरा कोई नहीं है. कवि विद्यापति कहते हैं सज्जन अर्थात महान व्यक्ति से नेह जोड़ना बहुत ही कठिन है.
Wednesday, February 2, 2011
Tuesday, February 1, 2011
Saturday, January 22, 2011
विद्यापति गीत ( कनक भूधर )
"कवि कोकिल विद्यापति"
(कवि कोकिल विद्यापति मिथिला के घर घर में अब भी अपनी रचनाओं के माध्यम से बसे हैं . ऐसा कोई भी शुभ कार्य नहीं जहाँ विद्यापति की रचनाओं को ना गाया जाता हो . शुभ कार्यों में भगवती या देवी स्तुति तो आवश्यक है . मिथिला वासी शिव शक्ति की पूजा करते हैं और हर शुभ कार्य का प्रारंभ देवी की स्तुति से होता है . प्रस्तुत है विद्यापति रचित देवी स्तुति . )
"कनक भूधर "
कनक-भूधर-शिखर-बासिनी
चंद्रिका-चय-चारु-हासिनि
दशन-कोटि-विकास-बंकिम-
तुलित-चंद्रकले ।।
क्रुद्ध-सुररिपु-बलनिपातिनि
महिष- शुम्भ-निशुम्भघातिनि
भीत-भक्त-भयापनोदन -
पाटव -प्रबले।।
जे देवि दुर्गे दुरिततारिणि
दुर्गामारी - विमर्द -कारिणि
भक्ति - नम्र - सुरासुराधिप -
मंगलप्रवरे ।।
गगन - मंडल - गर्भगाहिनि
समर - भूमिषु - सिंहवाहिनि
परशु - पाश - कृपाण - सायक -
संख -चक्र-धरे ।।
अष्ट - भैरवी - सँग - शालिनी
स्वकर - कृत - कपाल- मालिनि
दनुज - शोणित -पिशित - वर्द्धित-
पारणा-रभसे।।
संसारबन्ध - निदानमोचिनी
चन्द्र - भानु - कृशानु - लोचनि
योगिनी - गण - गीत - शोभित -
नित्यभूमि - रसे ।।
जगति पालन - जन्म - मारण -
रूप - कार्य - सहस्त्र - कारण -
हरी - विरंचि - महेश - शेखर -
चुम्ब्यमान - पड़े। ।
सकल - पापकला - परिच्युति-
सुकवि - विद्यापति - कृतस्तुति
तोषिते - शिवसिंह - भूपति -
कामना - फलदे।।
चंद्रिका-चय-चारु-हासिनि
दशन-कोटि-विकास-बंकिम-
तुलित-चंद्रकले ।।
क्रुद्ध-सुररिपु-बलनिपातिनि
महिष- शुम्भ-निशुम्भघातिनि
भीत-भक्त-भयापनोदन -
पाटव -प्रबले।।
जे देवि दुर्गे दुरिततारिणि
दुर्गामारी - विमर्द -कारिणि
भक्ति - नम्र - सुरासुराधिप -
मंगलप्रवरे ।।
गगन - मंडल - गर्भगाहिनि
समर - भूमिषु - सिंहवाहिनि
परशु - पाश - कृपाण - सायक -
संख -चक्र-धरे ।।
अष्ट - भैरवी - सँग - शालिनी
स्वकर - कृत - कपाल- मालिनि
दनुज - शोणित -पिशित - वर्द्धित-
पारणा-रभसे।।
संसारबन्ध - निदानमोचिनी
चन्द्र - भानु - कृशानु - लोचनि
योगिनी - गण - गीत - शोभित -
नित्यभूमि - रसे ।।
जगति पालन - जन्म - मारण -
रूप - कार्य - सहस्त्र - कारण -
हरी - विरंचि - महेश - शेखर -
चुम्ब्यमान - पड़े। ।
सकल - पापकला - परिच्युति-
सुकवि - विद्यापति - कृतस्तुति
तोषिते - शिवसिंह - भूपति -
कामना - फलदे।।
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कोकिल विद्यापति देवी की वन्दना करते हुए कहते हैं :
हे सुमेरु पर्वत पर निवास करने वाली , शुभ्र ज्योत्सना की तरह मुस्कान बिखेरनेवाली देवी आप अपने दन्त पंक्तियों के बंकिम विकास से चन्द्रकला को उपमित करती हैं .क्रुद्धावस्था में शत्रुओं के बल का विनाश करनेवाली, महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ का संहार करनेवाली हे देवी .....आप भयभीत भक्त के भय को दूर करने में प्रवीन हैं . पाप मुक्त करनेवाली, कठिन शत्रुओं का विनाश करनेवाली तथा भक्ति भाव से विनम्र हुए देवासुरों का कल्याण करनेवाली हे देवी दुर्गे ...आपकी जय हो ! अथाह आकाश मंडल में विचरण करनेवाली सिंह पर सवार हे देवी ! आप समर भूमि में अपने हाथों में परशु, पाश , कृपाण, वाण, शंख आ चक्र धारण किये रहती हैं . आठों भैरवियों को साथ रखनेवाली हे देवी .....आप आनंद प्रदायिनी हैं. चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान नेत्र वाली, संसार के बंधनों के कारणों से छुटकारा दिलानेवाली हे देवी ! संसार की उत्पत्ति पालन और संहार करनेवाली हे देवी आप हज़ारों रूप में कार्यों को सिद्ध करने हेतु हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु और महेश का मस्तक लगातार आपके चरणों को स्पर्श करता है . सभी पापों से मुक्ति दिलानेवाली हे देवी कवि विद्यापति आपकी स्तुति करते हैं और राजा शिव सिंह की कामना के अनुरूप फल प्रदान करें .
Wednesday, January 19, 2011
Friday, January 7, 2011
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