"देवाधि देव शंकर"
देवाधि देव शंकर, कर में त्रिशूल धारी,
आ जाओ हे मृत्युंजय, भव पाप नाश हारी।
गले रूद्र माल साजय शशि भाल पै विराजे,
भव पाप नाशिनी माँ, गंगे है सर पे गाजे।
त्रय लोक के हो स्वामी तन पे भुजंग धारी,
आ जाओ हे मृत्युंजय भव पाप नाश हारी।
देवाधि देव शंकर .............................।
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