"Madhubani Painting" Bride Going To Her Husband's House
Thursday, December 24, 2009
Wednesday, December 23, 2009
कवि कोकिल विद्यापति(तीसरी कड़ी )
कहा जाता है कि महा कवि विद्यापति की भक्ति एवं पद की माधुर्य से प्रसन्न हो" त्रिभुवन धारी शंकर"
उनके यहाँ उगना(नौकर) के रूप में उनकी सेवा की।
विद्यापति को उगना जंगल में मिला था और उस दिन से वह विद्यापति की चाकरी करने लगा। एक बार भगवन शंकर उगना के साथ जंगल के रास्ते कहीं जा रहे थे। उन्हें जोरों की प्यास लगी। भगवान शंकर ने पानी पीने की इच्छा उगना के सामने रखी और कहा इस वन प्रदेश में कुँआ और पोखरा तो कहीं मिलेगा नहीं। उगना यह सुनते ही कह उठा कि उसे वहां का कुआँ देखा हुआ था और वह पानी लेने चला गया। कवि जब भी उससे कुछ लेने कहते वह तुंरत लाकर दे देता था जिससे कवि को बहुत आश्चर्य होता। उस दिन पानी पीकर कवि समझ गए कि वह तो गंगा का पानी था और उगना से इसकी चर्चा की। उगना के रूप में भगवन शंकर को तब असली रूप में आना पड़ा। उस समय उन्होंने विद्यापति से वचन लिया कि वे किसी को उनका असली रूप नहीं बताएँगे और जिस दिन बता देंगे उस दिन वह अंतर्ध्यान हो जायेंगे।
एक दिन उनकी धर्मपत्नी ने उगना को कुछ लाने को कहा पर उगना ने लाने में बहुत देर कर दी। ज्यों ही उगना उनके सामने आया वह उसे जलावन वाले लकडी लेकर मारने दौडीं, यह देख विद्यापति के मुहं से निकल गया "यह क्या कर रही हो साक्षात शिव को मार रही हो"। इतना सुनना था कि शिव जी अंतर्ध्यान हो गए। तत्पश्चात कवि जंगल जंगल भटक व्याकुल हो गाते :
उगना रे मोर कतय गेलाह।
कतय गेलाह शिव किदहु भेलाह।।
भांग नहिं बटुआ रुसि बैसलाह।
जोहि हेरि आनि देल हंसि उठलाह।।
जे मोर कहताह उगना उदेस।
ताहि देवओं कर कंगना बेस। ।
नंदन वन में भेंटल महेश।
गौरी मन हखित मेटल कलेश। ।
विद्यापति भन उगना सों काज।
नहि हितकर मोर त्रिभुवन राज। ।
कवि विद्यापति की इन पाक्तियों में व्याकुलता और शिव जी को खोने का दुःख भरा हुआ है। कवि कहते हैं :
हे मेरे उगना तुम कहाँ चले गए। हे शिव यह क्या हो गया, कहाँ चले गए। भांग नहीं है इसलिए शिव मुझसे रूठ गए हैं। ढूंढ कर ला दूँगा तो फिर खुश हो जायेंगे। मुझे तो महेश नंदन वन में मिले थे और उनके आने से गौरी का मन हर्षित हो उठा था सारे क्लेश दूर हो गए थे। अंत में विद्यापति कहते हैं, उगना से काम करवाकर मैंने त्रिभुवन के राजा के साथ अच्छा नहीं किया।
हे मेरे उगना तुम कहाँ चले गए। हे शिव यह क्या हो गया, कहाँ चले गए। भांग नहीं है इसलिए शिव मुझसे रूठ गए हैं। ढूंढ कर ला दूँगा तो फिर खुश हो जायेंगे। मुझे तो महेश नंदन वन में मिले थे और उनके आने से गौरी का मन हर्षित हो उठा था सारे क्लेश दूर हो गए थे। अंत में विद्यापति कहते हैं, उगना से काम करवाकर मैंने त्रिभुवन के राजा के साथ अच्छा नहीं किया।
Saturday, December 19, 2009
कवि कोकिल विद्यापति (दूसरी कड़ी )
कवि विद्यापति ने सिर्फ़ प्रार्थना या नचारी की ही रचना नहीं की है अपितु उनका प्रकृति वर्णन भी उत्कृष्ठ है। बसंत और पावस ऋतु पर उनकी रचनाओं से मंत्र मुग्ध होना आश्चर्य की बात नहीं। गंगा स्तुति तो किसी को भाव विह्वल कर सकता है। ऐसा महसूस होता है मानों हम गंगा तट पर ही हैं।
गंगा स्तुतिबड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे।
छोड़इत निकट नयन बह नीरे। ।
कर जोरि बिनमओं विमल तरंगे।
पुन दरसन दिय पुनमति गंगे। ।
एक अपराध छेमब मोर जानी।
परसल माय पाय तुअ पानी । ।
कि करब जप तप जोग धेआने।
जनम कृतारथ एक ही सनाने। ।
भनहि विद्यापति समदओं तोहि।
अंत काल जनु बिसरह मोहि। ।
उपरोक्त पंक्तियों मे कवि गंगा लाभ को जाते हैं और वहां से चलते समय माँ गंगा से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि :
हे माँ गंगे आपके तट(किनारा) पर बहुत ही सुख की प्राप्ति हुई है, परन्तु अब आपके तट को छोड़ने का समय आ गया है तो हमारी आँखों से आंसुओं की धार बह रही है। मैं आपसे अपने हाथों को जोड़ कर एक विनती करता हूँ। हे माँ गंगे आप एक बार फिर दर्शन अवश्य दीजियेगा।
कवि विह्वल होकर कहते हैं : हे माँ गंगे मेरे पाँव आपके जल में है, मेरे इस अपराध को आप अपना बच्चा समझ क्षमा कर दें। हे माँ मैं जप तप योग और ध्यान क्यों करुँ जब कि आपके एक स्नान मात्र से ही जन्म सफल हो जाता है, कृतार्थ हो जाता है।
अंत मे विद्यापति कहते हैं हे माँ मैं आपसे विनती करता हूँ आप अंत समय में मुझे मत भूलियेगा अर्थात कवि की इच्छा है कि वे अपने प्राण गंगा तट पर ही त्यागें।
हे माँ गंगे आपके तट(किनारा) पर बहुत ही सुख की प्राप्ति हुई है, परन्तु अब आपके तट को छोड़ने का समय आ गया है तो हमारी आँखों से आंसुओं की धार बह रही है। मैं आपसे अपने हाथों को जोड़ कर एक विनती करता हूँ। हे माँ गंगे आप एक बार फिर दर्शन अवश्य दीजियेगा।
कवि विह्वल होकर कहते हैं : हे माँ गंगे मेरे पाँव आपके जल में है, मेरे इस अपराध को आप अपना बच्चा समझ क्षमा कर दें। हे माँ मैं जप तप योग और ध्यान क्यों करुँ जब कि आपके एक स्नान मात्र से ही जन्म सफल हो जाता है, कृतार्थ हो जाता है।
अंत मे विद्यापति कहते हैं हे माँ मैं आपसे विनती करता हूँ आप अंत समय में मुझे मत भूलियेगा अर्थात कवि की इच्छा है कि वे अपने प्राण गंगा तट पर ही त्यागें।
Friday, December 18, 2009
कवि कोकिल विद्यापति
"कवि कोकिल विद्यापति" का पूरा नाम "विद्यापति ठाकुर था। धन्य है उनकी माता "हाँसिनी देवी"जिन्होंने ऐसे पुत्र रत्न को जन्म दिया, धन्य है विसपी गाँव जहाँ कवि कोकिल ने जन्म लिया।"श्री गणपति ठाकुर" ने कपिलेश्वर महादेव की अराधना कर ऐसे पुत्र रत्न को प्राप्त किया था। कहा जाता है कि स्वयं भोले नाथ ने कवि विद्यापति के यहाँ उगना(नौकर का नाम ) बनकर चाकरी की थी। ऐसा अनुमान है कि "कवि कोकिल विद्यापति" का जन्म विसपी गाँव में सन १३५० ई. में हुआ। अंत निकट देख वे गंगा लाभ को चले गए और बनारस में उनका देहावसान कार्तिक धवल त्रयोदसी को सन १४४० ई. में हुआ।
यह उन्हीं की इन पंक्तियों से पता चलता है। :
विद्यापतिक आयु अवसान।
कार्तिक धवल त्रयोदसी जान।।
कार्तिक धवल त्रयोदसी जान।।
यों तो कवि विद्यापति मथिली के कवि हैं परन्तु उनकी आरंभिक कुछ रचनाएँ अवहटट्ठ(भाषा) में पायी गयी हैं। अवहटट्ठ संस्कृत प्राकृत मिश्रित मैथिली है। कीर्तिलता इनकी पहली रचना राजा कीर्ति सिंह के नाम पर है जो अवहटट्ठ (भाषा) में ही है। कीर्तिलता के प्रथम पल्लव में कवि ने स्वयं लिखा है। :
देसिल बयना सब जन मिट्ठा।
ते तैसन जम्पओ अवहटट्ठा । ।
अर्थात : "अपने देश या अपनी भाषा सबको मीठी लगती है। ,यही जानकर मैंने इसकी रचना की है"।
मिथिला में इनके लिखे पदों को घर घर में हर मौके पर, हर शुभ कार्यों में गाई जाती है, चाहे उपनयन संस्कार हों या विवाह। शिव स्तुति और भगवती स्तुति तो मिथिला के हर घर में बड़े ही भाव भक्ति से गायी जाती है। :
जय जय भैरवी असुर-भयाउनी
पशुपति- भामिनी माया
सहज सुमति बर दिय हे गोसाउनी
अनुगति गति तुअ पाया। ।
बासर रैन सबासन सोभित
चरन चंद्रमनि चूडा।
कतओक दैत्य मारि मुँह मेलल,
कतौउ उगलि केलि कूडा । ।
सामर बरन, नयन अनुरंजित,
जलद जोग फुल कोका।
कट कट विकट ओठ पुट पाँडरि
लिधुर- फेन उठी फोका। ।
घन घन घनन घुघुरू कत बाजय,
हन हन कर तुअ काता।
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक,
पुत्र बिसरू जुनि माता। ।
इन पंक्तियों में कवि ने माँ के भैरवी रूप का वर्णन किया है।
Thursday, December 10, 2009
Madhubani Painting
Friday, November 27, 2009
kohbar
मिथिलाँचल में कोहवर सब सँ प्रसिद्ध चित्रकला अछि जाहि केर बिना कोनो विवाह संपन्न नहिं होइत छैक । कनिया बरक कोठली के सेहो कोहबर कहल जाइत छैक आ एहि प्रकारक चित्रकला कनिया बरक कोठली में लगायल जाइत छैक जाहि केर अपन विशेष महत्व होइत छैक| कोहबर(चित्र ) के बीच में पुरैन होइत अछि जाहि केर सांकेतिक अर्थ छैक स्त्री-पुरुष के मिलन आ बाँसक गाछके तात्पर्य अछि वंश में वृद्धि | काछु होइत छैक दीर्घायुक प्रतीक आ माछ शुभ अपेक्षाक प्रतीक| मिथिलांचल में विवाह एक धार्मिक कार्य अछि जाहि में अन्य देवी देवताक संग नवग्रह पूजन सेहो होयत अछि| पूजा में प्रयोग होमय वला सामग्री शंख, पुरहर, पातिल, पटिया आदि के चित्रांकित कयल जाइत छैक ।
कनिया बर सहित बिधकरी सेहो बड महत्व छैक| मीठ बोली जे कि मिथिलांचलक कनिया केर सबस विशेष गहना अछि ताहि केर द्योतक सुग्गा-मैना आदि पक्षी एवम पुरुष के सुन्दरताक प्रतीक मोर एवम नवव्याहताक प्रति आकर्षित पुरुष भावके भ्रमर परिलक्षित करैत अछि | अंततः अपन सासुर दिस विदा कनियाक चित्र सेहो बनायल जायत अछि| मधुबनी शैली के इ चित्रकला हिन्दू विवाह के आत्मा के अंकित करैत अछि जे कि जीवन के मूलभूत सिद्धांत अछि | धर्मं आ परंपरा में परिवर्तन अयला सँ जीवनक मूल सिद्धांत नहिं बदलल जा सकैत अछि| ताहि कारण बेसी मिथिलावासी अपन सांस्कृतिक धरोहर के प्रति बहुत सचेत रहैत छथि | मुदा अखनो एहि कला के उचित सम्मान आ स्थान नहिं भेंटि रहल अछि |
Wednesday, November 25, 2009
Durga Devi
चित्र में नवदुर्गाके चित्रित कयल गेल अछि । प्रतिप्रदा सs नवमी तक
जाहि रूप के पूजा होइत छैक तकर क्रमबद्ध रूप देल गेल अछि । इ सब सँ
पहिने २००८ के दुर्गा पूजा में विदेह पर प्रकाशित भs चुकल अछि । प्रत्येक
देवी के हाथक संख्या , अस्त्र -शस्त्र केर प्रकार पर विशेष ध्यान देल गेल अछि ।
ताहि केर अतिरिक्त वस्त्र केर रंग, पूजा में जाहि रंग के जाहि दिन महत्व होएत
छैक ताहिकेर उपयोग कयल गेल छैक|
जाहि रूप के पूजा होइत छैक तकर क्रमबद्ध रूप देल गेल अछि । इ सब सँ
पहिने २००८ के दुर्गा पूजा में विदेह पर प्रकाशित भs चुकल अछि । प्रत्येक
देवी के हाथक संख्या , अस्त्र -शस्त्र केर प्रकार पर विशेष ध्यान देल गेल अछि ।
ताहि केर अतिरिक्त वस्त्र केर रंग, पूजा में जाहि रंग के जाहि दिन महत्व होएत
छैक ताहिकेर उपयोग कयल गेल छैक|
Saturday, November 21, 2009
Wednesday, September 23, 2009
भगवतीक गीत (जगदम्ब अहिं अवलम्ब)
भगवतीक गीत
जगदम्ब अहिं अवलम्ब हमर
हे माय अहाँ बिनु आस ककर । ....२
जँ माय अहाँ दुःख नय सुनबय,
त जाय कहु ककरा कहबय l
करू माफ़ जननि अपराध हमर ,
हे माय अहाँ बिनु आस ककर
जगदम्ब अहिं .................. ।
हम भरि जग सँ ठुकरायल छी
माँ अहिंक शरण में आयल छी ।
अछि बिच भंवर में नाव हमर
हे माय अहाँ बिनु आस ककर ।
जगदम्ब अहिं ................... ।
काली लक्ष्मी कल्याणी छी ,
दुर्गे तारा ब्रम्हाणी छी l
अछि पुत्र अहिंक बनल टुगर,
हे माय अहाँ बिनु आस ककर ।
जगदम्ब अहिं ..................... ।
Friday, September 18, 2009
भगवती स्तोत्र (अपराध सहस्राणि)
माँ दुर्गा
अपराध सहस्राणि क्रियन्तेsहर्निशं मया ।
दासोsयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरी ।।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी ।।
मंत्रहींनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरी ।
अपराध सहस्राणि क्रियन्तेsहर्निशं मया ।
दासोsयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरी ।।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी ।।
मंत्रहींनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरी ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ।।
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत ।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रम्हादयः सुराः ।।
सापराधोsस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।
इदानीमनुकम्प्योsहं यथे च्छसि तथा कुरु ।।
इदानीमनुकम्प्योsहं यथे च्छसि तथा कुरु ।।
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरी ।।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरी ।।
कामेश्वरी जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ।।
गुह्यातीगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरी ।।
Thursday, September 17, 2009
भगवती गीत (जय भगवती देवी नमो)
जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥
जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥
जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥
जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥
जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥
भावार्थ :
हे वरदायिनी देवि! हे भगवति! तुम्हारी जय हो। हे पापों को नष्ट करने वाली और अनन्त फल देने वाली देवि। तुम्हारी जय हो! हे शुम्भनिशुम्भ के मुण्डों को धारण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। हे मुष्यों की पीडा हरने वाली देवि! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ॥1॥ हे सूर्य-चन्द्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान देदीप्यामान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो। हे भैरव-शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुरका शोषण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥2॥ हे महिषसुर का मर्दन करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इन्द्र से नमस्कृत होने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥3॥ सशस्त्र शङ्कर और कार्तिकेयजी के द्वारा वन्दित होने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलने वाली गङ्गारूपिणि देवि! तुम्हारी जय हो। दु:ख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र-कलत्र की वृद्धि करने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥4॥ हे देवि! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन करानेवाली और दु:खहारिणी हो। हे व्यधिनाशिनी देवि! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवाच्छित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवि! तुम्हारी जय हो॥5॥
Sunday, August 16, 2009
दूर्वाक्षत मंत्र
मैथिल विवाह मे दूर्वाक्षतक बड महत्व छैक आ चुमाओन जतेक बेर होयत छैक एहि मंत्रक काज परैत छैक। आय काल्हि दूर्वाक्षतक मंत्र याद रखनाइ एकटा समस्या भs गेल छैक खास कs शहर मे। ओना त पञ्चांग मे मंत्र रहैत छैक मुदा कतहु कतहु पञ्चांग नहि रहैत छैक आ नेट अवश्य रहैत छैक।
दूर्वाक्षतक मंत्र:
ॐ आब्रह्मन ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यौsतिव्याधि महारथी जायताम दोघ्री धेनुर्वोढा sनड्वानाशुः सप्ति पुरन्ध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवाsस्ययजमानस्य वीरोजायाताम निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम योगक्षेमोनः कल्पताम् मंत्रार्था: सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रुणां बुद्धिनाशोsस्तु मित्राणामुदस्तव।
दूर्वाक्षतक मंत्र:
ॐ आब्रह्मन ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यौsतिव्याधि महारथी जायताम दोघ्री धेनुर्वोढा sनड्वानाशुः सप्ति पुरन्ध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवाsस्ययजमानस्य वीरोजायाताम निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम योगक्षेमोनः कल्पताम् मंत्रार्था: सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रुणां बुद्धिनाशोsस्तु मित्राणामुदस्तव।
Thursday, August 13, 2009
कनक भूधर ( भगवती स्तोत्र)
कवि कोकिल विद्यापति
कनक-भूधर-शिखर-बासिनी
चंद्रिका-चय-चारु-हासिनि
दशन-कोटि-विकास-बंकिम-
तुलित-चंद्रकले ।।
क्रुद्ध-सुररिपु-बलनिपातिनि
महिष- शुम्भ-निशुम्भघातिनि
भीत-भक्त-भयापनोदन -
पाटव -प्रबले।।
जे देवि दुर्गे दुरिततारिणि
दुर्गामारी - विमर्द -कारिणि
भक्ति - नम्र - सुरासुराधिप -
मंगलप्रवरे ।।
गगन - मंडल - गर्भगाहिनि
समर - भूमिषु - सिंहवाहिनि
परशु - पाश - कृपाण - सायक -
संख -चक्र-धरे ।।
अष्ट - भैरवी - सँग - शालिनी
स्वकर - कृत - कपाल- मालिनि
दनुज - शोणित -पिशित - वर्द्धित-
पारणा-रभसे।।
संसारबन्ध - निदानमोचिनी
चन्द्र - भानु - कृशानु - लोचनि
योगिनी - गण - गीत - शोभित -
नित्यभूमि - रसे ।।
जगति पालन - जन्म - मारण -
रूप - कार्य - सहस्त्र - कारण -
हरी - विरंचि - महेश - शेखर -
चुम्ब्यमान - पड़े। ।
सकल - पापकला - परिच्युति-
सुकवि - विद्यापति - कृतस्तुति
तोषिते - शिवसिंह - भूपति -
कामना - फलदे।।
Wednesday, August 12, 2009
गौरा तोर अंगना (महेशवाणी आ नचारी)
कवि कोकिल विद्यापति
गौरा तोर अंगना।
बर अजगुत देखल तोर अंगना।
एक दिस बाघ सिंह करे हुलना ।
दोसर बरद छैन्ह सेहो बौना।।
हे गौरा तोर ................... ।
कार्तिक गणपति दुई चेंगना।
एक चढथि मोर एक मुसना।।
हे गौर तोर ............ ।
पैंच उधार माँगे गेलौं अंगना ।
सम्पति मध्य देखल भांग घोटना ।।
हे गौरा तोर ................ ।
खेती न पथारि शिव गुजर कोना ।
मंगनी के आस छैन्ह बरसों दिना ।।
हे गौरा तोर ............... ।
भनहि विद्यापति सुनु उगना ।
दरिद्र हरन करू धएल सरना ।।
यज्ञोपवीत मंत्र
बाजसनेयी केर यज्ञोपवीत मंत्र
ॐ यज्ञोपवीतम परमं पवित्रं प्रजा पतेर्यत्सहजं पुरस्तात् । आयुष्यमग्रयं प्रतिमुंञ्च शुभ्रं। यज्ञोपवितम् बलमस्तुतेज:।।
छन्दोग केर यज्ञोपवीत मंत्र
ॐ यज्ञो पवीतमसि यज्ञस्य त्वोपवीतेनोपनह्यामि।
पंचांग
मैथिली पंचांग
सन् १४१७ साल (अंग्रेजी २००९-२०१० ई.)
विक्रम सं. - २०६६ - ६७
Festivals this year 1417 Saal (8 July 2009 - 26 July 2010)
सन् १४१७ साल (अंग्रेजी २००९-२०१० ई.)
विक्रम सं. - २०६६ - ६७
Festivals this year 1417 Saal (8 July 2009 - 26 July 2010)
Festival | Date | Tithi Duration IST Hours | Remarks | |
From | To | |||
Mauna Panchami Madhushravani begins | 12 Jly | (11/7)2051 | (12/7)2148 | In Mithila this day is celebrated as Nag Panchami. |
Madhushravani ends | 24 July | (24/7)0328 | (25/7)0116 | Special day for newly married |
Nag Panchami | 26 Jul | (25/7)2320 | (26/7)2149 | |
Raksha Vandhan | 5 Aug | (5/8)0311 | (6/8)0411 | |
Krishnastami | 14 Aug | (13/8)0935 | (14/8)0712 | Krishna Jayanti Vrat is on 13 Aug. |
Hartalika (Teej) | 23 Aug | (22/8)1122 | (23/8)0946 | |
GaneshChauth ChauthChandra | 23 Aug | (23/8)0946 | (24/8)0834 | Morning pooja of Ganesh Pradosh pooja of Chandrama |
Karma Dharma Ekadashi | 31 Aug | (30/8)1113 | (31/8)1306 | |
Anant Caturdashi | 3 Sep | (2/9)1710 | (3/9)1859 | |
Pitri Paksha begins | 5 Sep | (4/9)2029 | (5/9)2133 | |
Vishwakarma Pooja | 17Sep | |||
Jimutbahan Brat (Jitia) | 11 Sep | (11/9)1752 | (12/9)1545 | Mothers fast on this day for the welfare of their sons. |
Matri Navami | 13 Sep | (12/9)1544 | (13/9)1338 | |
Pitri Paksha ends | 18 Sep | (18/9)0152 | (18/9)2356 | |
Kalashsthapan | 19 Sep | (18/9)2356 | (19/9)2220 | |
Mahastami | 26 Sep | (25/9)2215 | (26/9)2358 | |
Maha Navami | 27 Sep | (26/9)2358 | (28/9)0146 | |
Vijaya Dashami | 28 Sep | (28/9)0146 | (29/9)0353 | |
Kojagara | 3 Oct | (3/10)1026 | ( 4/10)1106 | Pooja in Pradosh(evening) |
Dhanteras | 15 Oct | (15/10)1451 | (16/10)1320 | |
Chaturdashi(ChhotiDivali) | 16 Oct | (16/10)1320 | (17/10)1147 | |
Deepavali | 17 Oct | (17/10)1147 | (18/10)1034 | Pooja in Pradosh(evening) |
Bhratridwitiya | 20 Oct | (19/10)0949 | (20/10)0934 | Sisters perform 'naut' to brothers |
Chhath (Sandhya) | 23 Oct | (23/10)1152 | (24/10)1337 | Kharna on previous day and parna on next |
Akshyay Navami | 27 Oct | (26/10)1756 | (27/10)1743 | |
Devotthan Ekadashi | 29 Oct | (28/10)2137 | (29/10)2303 | |
Kartik Poornima | 2 Nov | (2/11)0110 | (3/11)0048 | Sama Bisarjan/ Guru Nanak Jayanti |
Ravi vrat arambh | 22 Nov | Sunday | ||
Makara Sankranti Teela Sankranti | 14 Jan | Tusari begins | ||
Naraknivaran chaturdashi | 13 Jan | (13/1)0822 | (14/1)1000 | Pradosh |
Basant Panchami | 20 Jan | (19/1)1948) | (20/1)2124) | |
Mahashivaratri | 12 Feb | (12/2)0251 | (13/2)0505 | Fast for the day, Mahadeo pooja in pradosh |
Poornima/Holika dahan(Fagua) | 28 Feb | (28/2)0032 | (28/2)2234 | Holika dahan in previous night. Fagua in Mithila & Dol in Bengal |
Holi (1 of Chaitra) | 1 Mar | (28/2)2234 | (1/3)2000 | Also new year day |
Vikram sambat 2067 | 16 Mar | Begins at 0140 IST | ||
Ram Navami | 24 Mar | (23/3)2326 | (24/3)2132 | |
Mesha Sankranti (Satua) | 14 April | Shaka 1930 begins | ||
Jurishital | 15 April | |||
Akshaya Tritiya | 16 May | ( 16/5)0441 | (17/5)0255 | |
Ravi Brat Ant | 25 Apr | Sunday | ||
Vat Savitri | 12 Jun | (11/6)1746 | (12/6)1640 | |
Hari Sayan Ekadashi | 21 Jul | (21/7)0419 | (22/7)0329 | |
Guru Poornima | 25 Jul | (6/7)1147 | (7/7)1338 |
विवाह,उपनयनक दिन
Marriage: (Saurath Sabha: Jul 8-Jul 14 2010) | Upnayan | Dwiragman | Mundan | Grih arambh | Griha pravesh | |
July 09 | 8,10,31 | 27,30,31 | ||||
August 09 | 7,8,10 | 1,3,5 | ||||
October 09 | 28,29 | 22,28,29,31 | ||||
Nov 09 | 19,22,23,27 | 18,19,27 | 18,23 | 2,5,28 | 23,28 | |
Dec 09 | 3,4 | 3 | 2,3 | |||
January 10 | 18 | |||||
February 10 | 15,17,18,21,22,24,25,26 | 3,15,18,25,26 | 25,26 | 18,24.25,26 | ||
March 10 | 1,4,5 | 3,5 | 3,5 | |||
April 10 | ||||||
May 10 | ||||||
June 10 | 2,3,6,7,13,17,18,20,21,23,24,25,27,28,30 | 21,22 | 21,26,28 | 17,21 | ||
July 10 | 1,8,9,14 | 1 | 21,26 | 21,23 |
Sunday, August 9, 2009
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय ( पंचाक्षर )
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम
उर्वारुक मिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ।
कहते हैं शिव जी अर्थात भोला बाबा या भोले दानी बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। उन्हें यदि प्रतिदिन जल चढाई जाय तो वो उससे भी प्रसन्न रहते है। वैसे तो लोगों का अलग अलग मत है पर यदि भोला बाबा को मन से अपने अपने घरों में भी याद की जाय तो वे अपने भक्तों को निराश नहीं करते।
उर्वारुक मिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ।
कहते हैं शिव जी अर्थात भोला बाबा या भोले दानी बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। उन्हें यदि प्रतिदिन जल चढाई जाय तो वो उससे भी प्रसन्न रहते है। वैसे तो लोगों का अलग अलग मत है पर यदि भोला बाबा को मन से अपने अपने घरों में भी याद की जाय तो वे अपने भक्तों को निराश नहीं करते।
(1 )
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मंगरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुध्याय दिगम्बराय
तस्मै न काराय नमः शिवाय ।।
मंदा किनी सलिल चन्दन चर्चिताय
नन्दीश्वर प्रमथ नाथ महेश्वराय।
मंदार पुष्प बहु पुष्प सुपूजिताय
तस्मै म काराय नमः शिवाय ।।
शिवाय गौरी बदनाब्जवृन्द
सूर्याय दक्षा ध्वरनाशकाय।
श्री नील कंठाय वृषध्वजाय
तस्मै शि काराय नमः शिवाय ।।
वसिष्ठ कुम्भो द्भव गौतमार्य-
मुनीन्द्र देवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्क वैश्वा नरलोचलाय
तस्मै व काराय नमः शिवाय।।
यक्षस्व रूपाय जटाधराय
पिनाक हस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै य काराय नमः शिवाय ।।
पंचाक्षर मिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिव लोक म़वा प्नोति शिवेन सः मोदते।।
Wednesday, August 5, 2009
रक्षा बंधन
रक्षा बंधन केर मंत्र
येन बन्धो बलि राजा दान वेन्द्रो महाबलः ।
तेनत्वा प्रतिबधनामि रक्षे माचल माचल: ।।
येन बन्धो बलि राजा दान वेन्द्रो महाबलः ।
तेनत्वा प्रतिबधनामि रक्षे माचल माचल: ।।
Sunday, August 2, 2009
भोला बाबा के गीत
मिथिला में शिव आ शक्ति केर पूजा होइत छैक। कोनो पाबनि हो बियाह हो कि उपनयन, बिना भोला बाबा आ भगवती के गीत के ओ संपन्न नहि भs सकैत छैक। मोन भेल, जे सब net प्रयोग करैत छथि हुनका लोकनि के लेल किछु भगवतीक गीत, महेशवाणी आ नचारीक संग्रह एकहि ठाम रहे तs हुनका लोकनि के सुविधा भs जयतैन्ह।
महेशवाणी आ नचारी
(१)
कखन हरब दुःख मोर
हे भोलानाथ।
दुखहि जनम भेल दुखहि गमाओल
सुख सपनहु नहि भेल हे भोला ।
एहि भव सागर थाह कतहु नहि
भैरव धरु करुआर ;हे भोलानाथ ।
भन विद्यापति मोर भोलानाथ गति
देहु अभय बर मोहि, हे भोलानाथ।
(२)
हम नहि आजु रहब अहि आँगन
जं बुढ होइत जमाय, गे माई।
एक त बैरी भेल बिध बिधाता
दोसर धिया केर बाप।
तेसरे बैरी भेल नारद बाभन ।
जे बुढ अनल जमाय। गे माइ ।।
पहिलुक बाजन डामरू तोड़ब
दोसर तोड़ब रुण्डमाल ।
बड़द हाँकि बरिआत बैलायब
धियालय जायब पदायागे माइ । ।
धोती लोटा पतरा पोथी
सेहो सब लेबनि छिनाय।
जँ किछु बजताह नारद बाभन
दाढ़ी धय घिसियाब, गे माइ। ।
भनइ विद्यापति सुनु हे मनाइनि
दिढ़ करू अपन गेआन ।
सुभ सुभ कय सिरी गौरी बियाहु
गौरी हर एक समान, गे माइ।।
(३)
हिमाचल किछुओ ने केलैन्ह बिचारी ।...2
नारद बभनमा सs केलैन्ह बिचारी
बर बूढा लयला भिखारी । ...२
हिमाचल .................२
ओहि बुढ़वा के बारी नय झारी
पर्वत के ऊपर घरारी..........2
हिमाचल किछुओ ने केलैन्ह बिचारी।.......2
भनहि विद्यापति सुनु हे मनाइन
इहो थिका भंगिया भिखारी.........2
हिमाचल किछुओ नय केलैन्ह बिचारी।.....2
(४)
भल हरि भल हरि भल तुअ, कला।
खन पित बसन खनहि बघछला ।।
खन पंचानन खन भुजचारि ।
खन शंकर खन देव मुरारि ।।
खन गोकुल भय चराई गाये ।
खन भिखि मांगिए डमरू बजाए ।।
खन गोविद भए लेअ महादान।
खनहि भसम भरू कांख बोकान ।।
एक सरीर लेल दुइ बास।
खन बैकुंठ खनहि कैलास।।
भनहि विद्यापति विपरीत बानि।
ओ नारायण ओ सुलपानि।।
(५)
आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागल हे।
तोहे सिव धरु नट भेस कि डमरू बजाबह हे। ।
तोहे गौरी कहैछह नाचय हमें कोना नाचब हे।।
चारि सोच मोहि होए कोन बिधि बाँचब हे।।
अमिअ चुमिअ भूमि खसत बघम्बर जागत हे।।
होएत बघम्बर बाघ बसहा धरि खायत हे।।
सिरसँ ससरत साँप पुहुमि लोटायत हे ।।
कातिक पोसल मजूर सेहो धरि खायत हे।।
जटासँ छिलकत गंगा भूमि भरि पाटत हे।।
होएत सहस मुखी धार समेटलो नही जाएत हे।।
मुंडमाल टुटि खसत, मसानी जागत हे।।
तोहें गौरी जएबह पड़ाए नाच के देखत हे।।
भनहि विद्यापति गाओल गाबि सुनाओल हे।।
राखल गौरी केर मान चारु बचाओल हे।
(१)
कखन हरब दुःख मोर
हे भोलानाथ।
दुखहि जनम भेल दुखहि गमाओल
सुख सपनहु नहि भेल हे भोला ।
एहि भव सागर थाह कतहु नहि
भैरव धरु करुआर ;हे भोलानाथ ।
भन विद्यापति मोर भोलानाथ गति
देहु अभय बर मोहि, हे भोलानाथ।
(२)
हम नहि आजु रहब अहि आँगन
जं बुढ होइत जमाय, गे माई।
एक त बैरी भेल बिध बिधाता
दोसर धिया केर बाप।
तेसरे बैरी भेल नारद बाभन ।
जे बुढ अनल जमाय। गे माइ ।।
पहिलुक बाजन डामरू तोड़ब
दोसर तोड़ब रुण्डमाल ।
बड़द हाँकि बरिआत बैलायब
धियालय जायब पदायागे माइ । ।
धोती लोटा पतरा पोथी
सेहो सब लेबनि छिनाय।
जँ किछु बजताह नारद बाभन
दाढ़ी धय घिसियाब, गे माइ। ।
भनइ विद्यापति सुनु हे मनाइनि
दिढ़ करू अपन गेआन ।
सुभ सुभ कय सिरी गौरी बियाहु
गौरी हर एक समान, गे माइ।।
(३)
हिमाचल किछुओ ने केलैन्ह बिचारी ।...2
नारद बभनमा सs केलैन्ह बिचारी
बर बूढा लयला भिखारी । ...२
हिमाचल .................२
ओहि बुढ़वा के बारी नय झारी
पर्वत के ऊपर घरारी..........2
हिमाचल किछुओ ने केलैन्ह बिचारी।.......2
भनहि विद्यापति सुनु हे मनाइन
इहो थिका भंगिया भिखारी.........2
हिमाचल किछुओ नय केलैन्ह बिचारी।.....2
(४)
भल हरि भल हरि भल तुअ, कला।
खन पित बसन खनहि बघछला ।।
खन पंचानन खन भुजचारि ।
खन शंकर खन देव मुरारि ।।
खन गोकुल भय चराई गाये ।
खन भिखि मांगिए डमरू बजाए ।।
खन गोविद भए लेअ महादान।
खनहि भसम भरू कांख बोकान ।।
एक सरीर लेल दुइ बास।
खन बैकुंठ खनहि कैलास।।
भनहि विद्यापति विपरीत बानि।
ओ नारायण ओ सुलपानि।।
(५)
आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागल हे।
तोहे सिव धरु नट भेस कि डमरू बजाबह हे। ।
तोहे गौरी कहैछह नाचय हमें कोना नाचब हे।।
चारि सोच मोहि होए कोन बिधि बाँचब हे।।
अमिअ चुमिअ भूमि खसत बघम्बर जागत हे।।
होएत बघम्बर बाघ बसहा धरि खायत हे।।
सिरसँ ससरत साँप पुहुमि लोटायत हे ।।
कातिक पोसल मजूर सेहो धरि खायत हे।।
जटासँ छिलकत गंगा भूमि भरि पाटत हे।।
होएत सहस मुखी धार समेटलो नही जाएत हे।।
मुंडमाल टुटि खसत, मसानी जागत हे।।
तोहें गौरी जएबह पड़ाए नाच के देखत हे।।
भनहि विद्यापति गाओल गाबि सुनाओल हे।।
राखल गौरी केर मान चारु बचाओल हे।
Thursday, July 9, 2009
दूर्वाक्षत मंत्र
मैथिल विवाह मे दूर्वाक्षतक बड महत्व छैक आ चुमाओन जतेक बेर होयत छैक एहि मंत्रक काज परैत छैक। आय काल्हि दूर्वाक्षतक मंत्र याद रखनाइ एकटा समस्या भs गेल छैक खास कs शहर मे। ओना त पत्रा मे मंत्र रहैत छैक मुदा
कतहु कतहु पत्रा नहि रहैत छैक आ नेट अवश्य रहैत छैक।
कतहु कतहु पत्रा नहि रहैत छैक आ नेट अवश्य रहैत छैक।
दूर्वाक्षतक मंत्र
ॐ आब्रह्मन ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यौsतिव्याधि महारथो जायताम दोघ्री धेनु वॉढ़ाsनड्वानाशुः सप्ति पुरन्ध्रियॉषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवाsस्ययजमानस्य वीरोजायाताम निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम योगक्षेमोनः कल्पताम मंत्राथॉः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रुणां बुद्धिनाशोsस्तु मित्राणामुदस्तव।
Friday, June 5, 2009
मैथिल विवाह
मैथिल विवाहक विधक सामग्री
कहल गेल छैक विवाह सs विध भारी। सच मे मैथिलक विवाह मे विधक ओरिऔन करय मे आ एक एक टा सामग्री जुटाबय मे आय काल्हि लोक के हालत ख़राब भs जायत छैक। एक तs आय काल्हि लोक के बुझलो नहि रहैत छैक, दोसर शहर मे सामग्री भेटय मे से दिक्कत होयत छैक। ई सोचि कs हम मैथिल विवाह मे काज आबय वाला विधक सामग्रीक एकटा सूचि एहि ठाम दs रहल छी।
1- डाला -
2- बेसन (घाईट)
3- ठक
4- वक
5-केराक भालरि
6- कछुआक खापरि
7- दिया (दीप
8- पुरहर
9- पातिल
10- आसन
11- पटिया
12- उखरि समाट
13- पालो
14 -पाग आ घुनेश
15 - दुर्वाछत
16- पाँच तरहक मिठाई
17 - केरा
18- दही
19 - बियेन
20 - सिन्दूर
21 - गोटा सुपारी
22- दूध
23 - दही
24 - फूल
25 - बेलपत्र
26 - दूर्वा (दूभि)
27 - गुआ माला
28 -गोटा हल्दी
29 - माटिक हाथी
30 - माटिक सरवा छोट
31 - श्रुव
32 - घी
33 - आमक लकडी
34 - कुश
35 - आमक पल्लव
36 - अक्षत
37 - जौ
38 - तिल
39 - पाथर (पत्थर)
40 - धोती
41- तौनी
42 - जनेऊ
43 -पानक पात
44 -पान लगैल
45 - धान
46- केराक फूल
47- बाँसक बेदी
Thursday, February 26, 2009
Sidhyant
Pune
There was a dialogue in my husband Mr Lallan Prasad Thakur's drama: "he jamana badail gelai ya", that means the time has changed. That is very true. We can see a drastic change in 10 years. I am not saying the change is bad thing, but in my view we should not leave our values. There are many messages which he gave through the dialogues of his drama.
In Maithil's marriage Mool, Gotra and Adhikar is very important. Each of the Gotra is named after a Muni or Rishi and one can't marry in same Gotra. It is said that the marriage in same gotra has genetic disorder in the children. Mool which depicts the origin of the ancestors of a person. Adhikar means right, and in Maithil's marriage a person can have an Adhikar to marry if he or she doesn't have blood relation with the girl or boy. From the girl's side six steps and from boy's side seven steps are counted for that. The genealogical records of Maithil Brahmins are kept with the genealogists. Each family has their genealogist and the genealogical record which is called panji(पंजी) are kept with them in their house in Saurath, these records are invaluable for Maithils because it has their ancestors name and the place their ancestors belonged to. Saurath is a village which is five kilometers from Madhubani. After going through the genealogical record the genealogist confirms the adhikar and then the Sidhyant is done.
Sidhyant is one of the step in Maithil marriage which is performed after the marriage negotiation is final. Actually the marriage is called final or settled after Sidhyant. In Sidhyant the genealogist enters the name of the bride and bridegroom in the genealogical record and is written on a bhojpatra too.When both the sides agree for the marriage they go to Saurath and to their particular genealogist. The genealogist takes out the records of the family and see whether they have blood relation. If a boy or the girl has blood relation then the marriage is not possible. If they don't have the blood relation then the sidhyant is done and is brought to brides house and kept near their pooja place. Now the arrangement for the wedding starts.
Now a days many people are not maintaining the Adhikar. Some even don't maintain the Gotra too and get married to the same gotra. Even the girls after their marriage don't put sindoor which has the significance. I feel, really time has changed or "jamana badail gelai ya".
There was a dialogue in my husband Mr Lallan Prasad Thakur's drama: "he jamana badail gelai ya", that means the time has changed. That is very true. We can see a drastic change in 10 years. I am not saying the change is bad thing, but in my view we should not leave our values. There are many messages which he gave through the dialogues of his drama.
In Maithil's marriage Mool, Gotra and Adhikar is very important. Each of the Gotra is named after a Muni or Rishi and one can't marry in same Gotra. It is said that the marriage in same gotra has genetic disorder in the children. Mool which depicts the origin of the ancestors of a person. Adhikar means right, and in Maithil's marriage a person can have an Adhikar to marry if he or she doesn't have blood relation with the girl or boy. From the girl's side six steps and from boy's side seven steps are counted for that. The genealogical records of Maithil Brahmins are kept with the genealogists. Each family has their genealogist and the genealogical record which is called panji(पंजी) are kept with them in their house in Saurath, these records are invaluable for Maithils because it has their ancestors name and the place their ancestors belonged to. Saurath is a village which is five kilometers from Madhubani. After going through the genealogical record the genealogist confirms the adhikar and then the Sidhyant is done.
Sidhyant is one of the step in Maithil marriage which is performed after the marriage negotiation is final. Actually the marriage is called final or settled after Sidhyant. In Sidhyant the genealogist enters the name of the bride and bridegroom in the genealogical record and is written on a bhojpatra too.When both the sides agree for the marriage they go to Saurath and to their particular genealogist. The genealogist takes out the records of the family and see whether they have blood relation. If a boy or the girl has blood relation then the marriage is not possible. If they don't have the blood relation then the sidhyant is done and is brought to brides house and kept near their pooja place. Now the arrangement for the wedding starts.
Now a days many people are not maintaining the Adhikar. Some even don't maintain the Gotra too and get married to the same gotra. Even the girls after their marriage don't put sindoor which has the significance. I feel, really time has changed or "jamana badail gelai ya".
Sunday, February 22, 2009
Maithil Kohbar
A room or a bed room con verted during a Maithil wedding for rituals and customs is called kohbar. (कोहबर)। It is decorated before the wedding and is the most important part or place of Maithil's marriage. It has a great significance during the wedding. For four five days maximum time of bride and bride groom is spent in the kohbar, doing rituals. The rituals of wedding starts from the kohbar and ends in the kohbar.
The walls are decorated by the women. In previous days the kohbar walls were painted by the women and by home made natural colors. A kind of stick and cotton was used as a brush for that painting. Now a days the painting is painted on paper sheets and by the colors available in the market and is put on the walls. It is easy to paint and can be kept and used afterward. The decoration and painted walls of the kohbar was also kept for at least one year.
One side of the wall where most of the rituals and the customs are performed is well decorated and painted. The aripan (rangoli) is made on the floor. An elephant, two pots called ahibat purhar, made up of clay is also kept there. A mat is spread there and the bride and bride groom sits on it while performing the customs and rituals. But the actual wedding with vedic mantras is performed on the vedi, only chaturthi's wedding is performed in the kohbar, which is generally made in the courtyard.
For four or five days(for chhandog it is four days and for vachasnai it is five days) that is till chaturthi the bride and bride groom has to sleep in the kohbar. On the fourth or fifth day early in the morning the whole wedding process, except the pheras, is repeated in the kohbar. After this the wedding is complete. So, the role of the kohbar is obviously very important in Maithil marriage.
The painting which is painted on the walls of a kohbar is also called"Kohbar" and this is one of the style of the famous Madhubani Painting.
One side of the wall where most of the rituals and the customs are performed is well decorated and painted. The aripan (rangoli) is made on the floor. An elephant, two pots called ahibat purhar, made up of clay is also kept there. A mat is spread there and the bride and bride groom sits on it while performing the customs and rituals. But the actual wedding with vedic mantras is performed on the vedi, only chaturthi's wedding is performed in the kohbar, which is generally made in the courtyard.
For four or five days(for chhandog it is four days and for vachasnai it is five days) that is till chaturthi the bride and bride groom has to sleep in the kohbar. On the fourth or fifth day early in the morning the whole wedding process, except the pheras, is repeated in the kohbar. After this the wedding is complete. So, the role of the kohbar is obviously very important in Maithil marriage.
The painting which is painted on the walls of a kohbar is also called"Kohbar" and this is one of the style of the famous Madhubani Painting.
Marriage
First Post
This will be my exclusive blog for Maithils, regarding marriages, it's rituals and customs.
This will be my exclusive blog for Maithils, regarding marriages, it's rituals and customs.
Thursday, February 12, 2009
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