मिथिलाँचल में कोहवर सब सँ प्रसिद्ध चित्रकला अछि जाहि केर बिना कोनो विवाह संपन्न नहिं होइत छैक । कनिया बरक कोठली के सेहो कोहबर कहल जाइत छैक आ एहि प्रकारक चित्रकला कनिया बरक कोठली में लगायल जाइत छैक जाहि केर अपन विशेष महत्व होइत छैक| कोहबर(चित्र ) के बीच में पुरैन होइत अछि जाहि केर सांकेतिक अर्थ छैक स्त्री-पुरुष के मिलन आ बाँसक गाछके तात्पर्य अछि वंश में वृद्धि | काछु होइत छैक दीर्घायुक प्रतीक आ माछ शुभ अपेक्षाक प्रतीक| मिथिलांचल में विवाह एक धार्मिक कार्य अछि जाहि में अन्य देवी देवताक संग नवग्रह पूजन सेहो होयत अछि| पूजा में प्रयोग होमय वला सामग्री शंख, पुरहर, पातिल, पटिया आदि के चित्रांकित कयल जाइत छैक ।
कनिया बर सहित बिधकरी सेहो बड महत्व छैक| मीठ बोली जे कि मिथिलांचलक कनिया केर सबस विशेष गहना अछि ताहि केर द्योतक सुग्गा-मैना आदि पक्षी एवम पुरुष के सुन्दरताक प्रतीक मोर एवम नवव्याहताक प्रति आकर्षित पुरुष भावके भ्रमर परिलक्षित करैत अछि | अंततः अपन सासुर दिस विदा कनियाक चित्र सेहो बनायल जायत अछि| मधुबनी शैली के इ चित्रकला हिन्दू विवाह के आत्मा के अंकित करैत अछि जे कि जीवन के मूलभूत सिद्धांत अछि | धर्मं आ परंपरा में परिवर्तन अयला सँ जीवनक मूल सिद्धांत नहिं बदलल जा सकैत अछि| ताहि कारण बेसी मिथिलावासी अपन सांस्कृतिक धरोहर के प्रति बहुत सचेत रहैत छथि | मुदा अखनो एहि कला के उचित सम्मान आ स्थान नहिं भेंटि रहल अछि |
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