Wednesday, August 12, 2009

गौरा तोर अंगना (महेशवाणी आ नचारी)



कवि कोकिल विद्यापति


गौरा तोर अंगना।
बर अजगुत देखल तोर अंगना।

एक दिस बाघ सिंह करे हुलना ।
दोसर बरद छैन्ह सेहो बौना।।
हे गौरा तोर ................... ।


कार्तिक गणपति दुई चेंगना।
एक चढथि मोर एक मुसना।।
हे गौर तोर ............ ।


पैंच उधार माँगे गेलौं अंगना ।
सम्पति मध्य देखल भांग घोटना ।।
हे गौरा तोर ................ ।

खेती न पथारि शिव गुजर कोना ।
मंगनी के आस छैन्ह बरसों दिना ।।
हे गौरा तोर ............... ।

भनहि विद्यापति सुनु उगना ।
दरिद्र हरन करू धएल सरना ।।

4 comments:

पारुल "पुखराज" said...

आपके पास यदि विद्यापति की "कनक भूधर " रचना है तो कृपया पोस्ट कीजिये

बिपिन बादल said...

vidyapatik geet maithilk sanskar me samahit achhi. bahut neek rahat jaun maithil sanskar aa parampara ke seho lagatar jagah dait rahi. Sanghi KOHBAR k arth, sandarbh aa prasangikta par seho prakash del jau.

Kusum Thakur said...

पारुल जी
आपके लिए मैंने "कनक भूधर "
लिख दिया है.
सप्रेम
-कुसुम-

Kusum Thakur said...

Bipin Badal ji,
hum Kohabar ke vishay me seho ehi blogak puranak post par dene chhi.

 
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