कवि कोकिल विद्यापति
गौरा तोर अंगना।
बर अजगुत देखल तोर अंगना।
एक दिस बाघ सिंह करे हुलना ।
दोसर बरद छैन्ह सेहो बौना।।
हे गौरा तोर ................... ।
कार्तिक गणपति दुई चेंगना।
एक चढथि मोर एक मुसना।।
हे गौर तोर ............ ।
पैंच उधार माँगे गेलौं अंगना ।
सम्पति मध्य देखल भांग घोटना ।।
हे गौरा तोर ................ ।
खेती न पथारि शिव गुजर कोना ।
मंगनी के आस छैन्ह बरसों दिना ।।
हे गौरा तोर ............... ।
भनहि विद्यापति सुनु उगना ।
दरिद्र हरन करू धएल सरना ।।
4 comments:
आपके पास यदि विद्यापति की "कनक भूधर " रचना है तो कृपया पोस्ट कीजिये
vidyapatik geet maithilk sanskar me samahit achhi. bahut neek rahat jaun maithil sanskar aa parampara ke seho lagatar jagah dait rahi. Sanghi KOHBAR k arth, sandarbh aa prasangikta par seho prakash del jau.
पारुल जी
आपके लिए मैंने "कनक भूधर "
लिख दिया है.
सप्रेम
-कुसुम-
Bipin Badal ji,
hum Kohabar ke vishay me seho ehi blogak puranak post par dene chhi.
Post a Comment