Saturday, October 28, 2017

हे शंकर प्रलयंकर ( शिव स्तोत्र )



 हे शंकर प्रलयंकर प्रलयंकर हे त्रिशूल धारी
बाघम्बर धरणीधर उर विशाल धारी 
हे शंकर.....…..........................

हाथे डमरू कराल कंठ शोभे काल व्याल
दृग युग भुज हैं विशाल, हे त्रिनेत्र धारी
हे शंकर ...................................

हे रमापति हे उमेश काटो सेवक के क्लेश
जगत पिता हे सुरेश, शंकर त्रिपुरारी
हे शंकर......…..........................

जय जय हे महाकाल तू कृपालु तू दयालु
भक्तन को कर दो निहाल , शंकर त्रिपुरारी
 हे शंकर .....……...........…...........

Wednesday, February 8, 2017

भल हरि भल हरि(विद्यापति पद्य)


भल हरि भल हरि भल तुअ, कला।
खन पित बसन खनहि बघछला ।।

खन पंचानन खन भुजचारि ।
खन शंकर खन देव मुरारि ।।

खन गोकुल भय चराई गाये ।
खन भिखि मांगिए डमरू बजाए ।।

खन गोविद भए लेअ महादान।
खनहि भसम भरू कांख बोकान ।।

एक सरीर लेल दुइ बास।
खन बैकुंठ खनहि कैलास।।

भनहि विद्यापति विपरीत बानि।
ओ नारायण ओ सुलपानि।।

 
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