Sunday, July 25, 2010

Deviji episode: 1

                                   एकटा शिक्षिका छली जिनका सब गाममें देवीजी कहैत छालें | हुनका स सब विद्यार्थी डेरायतो छल मुदा सम्मान सेहो करैत छल | एक दिन ओ एक कक्षा में गेली त हुनका एकटा बच्चा एकटा सुग्गा देलकैन जाकर देवीजी बजनाई सिखा देल गेल रहय | पिंजरा में बंद ओही पक्षी के बजनाई सुनी सब हंसय लागल | देवीजी ओकरा तत्काल स्वीकार क पढ़ाबय में लागि गेली | बाद में ओही बालक स पुछलखिन, "जों अहंकइ कियो अपन शौक पूरा करै लेल पिंजरा में बंद कय देत त अहांके कहें लगत ?  हमरा अहि भेंट स कनिको ख़ुशी नहिं भेल |" बालक के अपन गलती के अनुभव तुरत भ गेलय | ओ तखने ओहि पक्षी के पिंजरा स मुक्त क देलकय |
                            अगिला दिन देवीजी सबके पक्षी देखबाक नब तरीका सिखेलखिन | पाठशाला के प्रांगन के एकांत कोना में एक टेबल राखि देलखिन | ताहि पर मकई, चाउर, गहुम, अन्कुरायल चना, रोटीक टुकड़ा, एक कटोरी पानि आदि राखि देलखिन | सबकियो दूर बैसी क प्रतीक्षा कराय लागलैथ| कनिके देर में तरह-तरह के पक्षी ओतय हलचल कराय लागल | ई दृश्य सबलेल ओ पिंजारक पक्षी देखय स बेसी नीक छल | तखन देवी जी कहलखिन जे असली ख़ुशी दोसर के खुश कराय में छही | अप्पन स्वार्थ लेल दोसर के कष्ट देनाई पाप होयत छई | सब बच्चा सब शपथ लेलक जे आब कोनो पक्षी के पिंजरा में बंद नहिं करब |

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